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________________ [८९ ] ढाल २. ॥ सांभली जीनवर मुखथी साचुं ॥ ए देशी छे ।। ___ सभा सहू आगले सोय मुनिवर ।। धर्म देशना भासेरे भविक जिवने भव भय हरवा । प्रवचन व. चन प्रकाशेरे ॥ धर्म करोरे धर्मधुरंधर ॥१॥ अर्थ कामने कामेरे ॥ धर्म तणा संबलविण कहो किम ।। प्रांणी वांछित पामेरे॥२॥ सोए धर्म दोइ भेदे भाष्यो। श्री आग्यम जीन राजेजी ॥ सर्व दृत्ति देशत्ति अ. धिकारे ||३|| यति श्रावकने काजेरे पंच महावत धारी मुनिवर ॥ ४ ॥ श्रावक वीरता विरतीरे ॥ श्रीजीन आणा दोयने अधकी ॥ दया भाव अनुसरतीरे।। पेहेलं समकीत सुध करेवा ।। श्री जिन भक्ति उदाररे ॥ सोए आराधो चार निषेपे॥ बोले ते अनुजोग द्वारेरे नामथापना द्रव्य भावजीन ॥ जीन नामा नाम जी. नरे ॥ ठवणजीनाते जीनवर प्रतिमा ॥ सोहमसामि वचनरे ॥६॥ १०॥ द्रव्य जिना जीन जीव कहीजे ॥ वंदे भरत नरिंदरे । समवसरण बेठाजे स्वामी । ते तो भावि जीनंदरे ॥७॥ ध० ॥ भाव जिणंदतणो जो विरहे ।। जीन प्रतिमा जिन सरखिरे ।। द्रव्य Aho! Shrutgyanam
SR No.034195
Book TitleGirnar Galp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherHansvijay Free Jain Library
Publication Year1921
Total Pages154
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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