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आरम्भ-सिद्धिः
साथसाथ एंटलं कह्या बिना रही शकतो नथी के ते भवोद्धारक संसार निस्तारक मारा अप्रतीम उपकारी सुगृहीतनामधेय कृपाम्बराभरण आचार्य महाराजानो सदानो हुं अस्सीम ऋणी छु, के जेमना पुण्य नामे अनेक सेवासमाजो, स्नात्रमंडळो, अने प्रत्यक्ष आ संस्था प्राण टकावी रह्या छे - ते भोश्रीनं म्हारी उरतल उपर जे अमित अने अनिर्वचनीय उपकारवण वधुं छे तथा सैद्धान्तिक, साहित्यविषयक अने कार्म्मग्रन्थिक क्षेत्रोमांना सञ्चार उपरान्त श्रीमती आरम्भसिद्धिद्वारा ज्योतिष जेवा - वहन अने सहन करवामां गहन एवा चार क्षेत्रमां पण सुलभताथी म्हारी अल्पमतिने बीजोप्ति न्याये जे थोडी पण गतिमान अने विकसित करी छे, ते उपकारने अने साचा तेमज मीठा ज्ञानलवना प्रसादने यावदेह भूली शकुं तेम नथी.... नथी.... .. ने नथीज अने तेओश्रीना ते कृपाना सुबलथीज म्हारुं आ विकट कार्य पण निकट थइ शक्युं छे.
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हवे छेवटमां हुं एटलीज वांचकगण पासे आशा राखीश, के आ ग्रन्थमां सम्भवित अनेक भूलो, अशुद्धिओ, त्रुटिओ, स्खलनाओ अने दोषो, म्हारा छान
के प्रामादिक कारणने अंगे, सामग्री अभावना कारणे, अथवा तो प्रेसना कारण शुद्धिपत्रकमा आप्या उपरांत पण रह्या होय, ते सुधारोने वांचवा प्रकृतिकृपालु विपश्चिद्वृन्द कृपा करे ! एक मोटी भूल सुधारखा जेवी छे, जे पृ. २४४ - ८ मां नेयं छपायुं छे ते स्थाने नेह समजवुं.
आ उपरांत म्हारा आ कार्यनी सफलता प्राप्त करवामां जे उपकारनिधान पूजनीय मुनिराजोए - पूज्य हेमेन्द्रविजयजी महाराज पूज्य विक्रमविजयजी महाराज तथा पूज्य ललिताङ्गविजयजी महाराज विगेरेए सहायक साथ म्हने आप्यो छे, ते बदल तेमनो तथा पूज्यपाद गुणरत्ननिधि - शासनप्रभावक श्रीमद्विजयक्षमाभद्रसूरिजी महाराजे ब्लोको अर्पण कर्या ते बदल ते ओश्रीनी पण उपकृति मानवापूर्वक आ कलमने विराम आएं हूं.
महर्द्धिक ऋषिपुङ्गवोना सुप्रसादेच्छुक मुनि जितेन्द्रविजय.
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