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फल अनारके बीज और मनोहर समयके फूल इनकी मात्रा जो भाजनके योग्य न हों अर्थात अल्प अल्प बलिकर्ममें कही हैं ॥ १५१ ॥ उनके १.अ.जामन्त्र ये हैं कि, देवी देवता मुनींद्र त्रिभुवनके पति दानव सर्व सिद्ध यक्ष राक्षस नाग गरुड हैं मुख्य जिनमें ऐसे पक्षी गुह्यक देवताओंके ॥४४॥
देव डाकिनी देवताओंकी वेश्या हरि समुद्रके पति मातर विघ्रनाथ प्रेत भूत पिशाच श्मशान और नगर आदिके अधिपति और क्षेत्रपाल ॥ १५२ ॥ गन्धर्व और संपूर्ण किन्नर जटाधारी पितर ग्रह कूष्माण्डपूतना रोग ज्वर वैतालिक शिव ॥ १५३ ॥ रुधिरसे युक्त और पिशुन (चुगल) फलैश्च दाडिमीबीजैः कालपुष्पैर्मनोरमैः । मात्राननाशनमिता बलिकर्मणि चोदिताः ॥१५१॥ मन्त्राः-देव्यो देवा मुनीन्द्रास्त्रिभु वनपतयो दानवाः सर्वसिद्धा यक्षा रक्षांसि नागा गरुडमुखखगा गुह्यका देवदेवाः। डाकिन्यो देववेश्या हरिदधिपतयो मातरो विघ्न नाथाः प्रेता भूताः पिशाचाः पितृवननगराधाधिपाः क्षेत्रपालाः ॥ १५२ ॥ गन्धर्वाः किन्नरास्सर्वे जटिलाः पितरो ग्रहाः। कूष्मा ण्डाः पूतनारोगा ज्वरा वैतालिकाः शिवाः ॥ १५३ ॥ अमृक्प्लुताश्च पिशुना भक्षमांसास्त्वनेकशः । लम्बक्रोडास्तथा ह्रस्वा दीर्घाः शुक्लास्तथैव च ॥१५४॥ खनाः स्थूलास्तथैकाक्षा नानापक्षिमुखास्तथा । व्यालास्या उष्ट्रवक्राश्च अवकाः क्रोडवर्जिताः ॥१५॥ धमनाभास्तमालाभा द्विपाभा मेघसन्निभाः । बगलाभाः क्षितिनिभा अशनिस्वनसन्निभाः ॥ १५६ ॥ और अनेक प्रकारके मांसके भक्षक लम्बक्रोड दीर्घ शुक्ल ॥ १५४ ॥ खन्न (लँगडे) स्थूल एकाक्ष अनेक प्रकारके वे जिनके पक्षियों का समान मुख हों सर्पके समान जिनके मुख हों और उष्ट्रमुख और मुखसे हीन और क्रोड (छाती) से हीन ॥ १५५ ॥ धमनके समान जिनकी कान्ति और तमालके समान जिनकी कान्ति है हाथीके समान और मेघकी समान जिनकी कान्ति बगलके समान और क्षितिके तुल्य वजके