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________________ । सहित हरिताल और ओदनकी बलि दे॥ १२९ ॥ मित्रको घृतोदन कच्चे मांस और सहतकी बाल दे. राजयक्ष्मा पृथ्वीधर और मितौजस इनको ॥ १३० ॥ मांस कूष्माण्डकी बलि दे. आपवत्सको दधिकी बलि दे. ब्रह्माको पंचगव्य जौ तिल अक्षत दधि इनकी बलि दे ॥ १३१ ॥अनेक प्रकारके भक्ष्य भोज्य और अनेक प्रकारके फल संपूर्ण देवताओंको दे. इस पूर्वोक्त रीतिसे भली प्रकार बलि देकर संपूर्ण देवताओंको सुवर्ण दे॥१३॥ य संपूर्ण *कार जिनकी आदिमें और चतुर्थीविभाक्त जिनके अन्तमें ऐसे नाममंत्रोंसे मंत्रके ज्ञाताको देने और सब देवताओंको सुवर्ण देना घृतौदनं च मित्राय आममांसमधुस्तथा। राजयक्ष्मणे च पृथ्वीधराय च मितौजसे ॥१३०॥ मांसानि कूष्माण्डमिति आपवत्साय वै दधि । ब्रह्मणे पञ्चगव्यं च यवं तिलाक्षतं दधि ॥ १३१ ॥ विविधान्भक्ष्यभोज्यांश्च फलानि विविधानि च । यवं दत्त्वा बलिं सम्यग्दद्यात्तेभ्यो हिरण्मयम् ॥ १३२॥ प्रणवाद्येश्चतुर्थ्यन्तैर्नाममन्त्रेण मन्त्रवित् । सर्वेभ्योऽपि हिरण्यं च ब्रह्मणे गां पयस्विनीम् ॥ १३३ ॥ अथवा पायसं दद्यात्सर्वेभ्यश्च सदीपकम् । ततो बाह्यस्थितानां तु बलिं दद्याद्विधानतः॥ १३४ ॥ चरक्यै मापभक्तं च सघृतं पद्मकेशरम् । इविश्चैव तथाग्नेये वितानकविदारिके ॥ १३५ ॥ मापभक्तं सरुधिरं हरिद्राभक्तमेव च । नैर्ऋत्यां च पूत नायै मापभक्तेन संयुतम् ॥१३६॥ रुधिरास्थिपीतरक्तं बलिं देव्यै निवेदयेत् । वायव्ये पापराक्षस्यै मत्स्यमांसं सुरासवम्॥१३७॥ और ब्रह्माको दूध देतीहुई गौको दे॥ १३३ ॥ अथवा सब देवताओंको दीपक सहित पायस दे फिर विधिसे बाह्यमें स्थित देवताओंको बलि दे॥ १३४ ॥ चरकीको उडदोंका भक्त और घीसहित पद्मकेशर और हवि दे और अग्निकोणमें विदारिकाको चन्दोवा ॥ १३५ ॥ माष भक्त रुधिर और हरिद्राभक्त दे और नैर्ऋतमें पूतनाको माषभक्तसे मिलेहुए ॥ १३६ ॥ रुधिर अस्थि और पीतः रक्तकी बलि निवेदन करे और
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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