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________________ - - - धुओंके विभागोंमें नौ ९ नवक जानने ॥ १८ ॥ शान्ता यशोवती कांता विशाला प्राणवाहिनी सती सुमना नंदा सुभद्रा और सुस्थिता ॥ १९ ॥ ये दश १० रेखा पूर्वपश्चिमके गत (गई) होती हैं और उत्तर और दक्षिणके आश्रित ये होती हैं हिरण्या सुव्रता लक्ष्मी विभूति विमला प्रिया ॥ २०॥ जया काला विशोका और दशमी इंद्रा कही है । इक्यासी पदके वास्तुमें ये शिरा कही हैं ॥ २१॥ श्रिया यशोवती कांता सुप्रिया परा शिवा सशोभा सधना और नौमी इभा ॥ २२॥ ये नौ शिरा पूर्व से पदिचमपर्यंत चौंसठ पदके वास्तुमें होती हैं. धन्या धरा विशाला शान्ता यशोवती कान्ता विशाला प्राणवाहिनी । सती च सुमनानन्दा सुभद्रा सुस्थिता तथा ॥१९॥ पूर्वापरागता ह्येता उदग्या | म्याश्रितास्तथा । हिरण्या सुव्रता लक्ष्मीविभूतिविमला प्रिया ॥ २०॥ जया काला विशोका च तथेन्द्रा दशमी स्मृता । एका शीतिपदे ह्येता शिराश्च परिकीर्तिताः ॥ २१ ॥ श्रिया यशोवती कान्ता सुप्रियापि परा शिवा । सुशोभा सधना ज्ञेया तथेभा नवमी स्मृता ॥ २२ ॥ पूर्वापरा तथा ह्येताश्चतुष्पष्टिपदे स्थिताः । धन्या धरा विशाला च स्थिरा रूपा गदा निशा ॥ २३॥ | विभवा प्रभवा चान्या सीम्यासौम्याश्रिताः शिराः। पदस्याष्टांशको भागस्तत्प्रोक्तं कर्मसंज्ञकम् ॥२४॥पदहस्तसंख्यया सम्मितो निवेशोङ्गलानि । विस्तीर्णवंशव्यासोर्ट्स शिरामानं प्रचक्षते ॥ २५ ॥ संपाता अपि वंशानां मध्यमानि समानि च । पदानां पाति जातान्विद्यात्सर्वाणि भयदान्यपि ॥२६॥ का स्थिररूपा गदा और निशा ॥ २३ ॥ विभवा प्रभवा और सौम्या ये उत्तरदिशामें नौ ९शिरा होती हैं पदके आठवें अंशको कर्मसंज्ञक भाग कहते ॥ २४ ॥ पदके हाथकी संख्यासे जो निवेश उसे अंगुल कहते हैं. विस्तारकिये वंशका जो ऊर्श्वभाग उतना शिरका प्रमाण कहते हैं ॥ २५॥ बासोका जो सम्पात उसका भी मध्यम और समभाग जो हो वह भी शिराका मान जानना और उसके मध्य में जो पद हो उन सबको भयके ।
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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