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________________ १ सुवर्णआदिके गृहारंभमें मासका दोष नहीं होता. पंचाङ्गके शुद्ध कालमें प्रारंभ करे. चैत्र माद्रपद और पौष इनमें प्रवेश न करें ॥ २३ ॥ महोत्सवमें प्रवेश (न) करे. पक्की ईटोंसे बनाये हुए शिल्पक मानको कहते हैं ॥ २४ ॥ काष्ठ आदिसे बनायेहुए घरमें स्तंभके मानको कहते है, सुवर्ण आदिके घरमें हस्तप्रमाणको कहते हैं. लाखआदिसे बनाये घरमें किंचितभी प्रमाणको नहीं कहते हैं ॥ २५ ॥ पादुक और उपानह अंगुलके प्रमाणसे बनवाने, मंच आदि और आसनभी अंगुलसेही बनवाने ॥ २६ ॥ प्रतिमा पीठिका लिंग और स्तंभ गवाक्षांका | सौवर्णादिगृहारम्भे मासदोषो न विद्यते । पञ्चाङ्गशुद्धकाले तु न चैत्रे सिंहपौषके ॥ २३ ॥ प्रवेशनं च कर्तव्यं महोत्सवदिने 19 तथा । पक्वष्टकानिर्मिते तु शिल्पमानं प्रवक्ष्यते ॥ २४ ॥ काष्टादिनिर्मिते गेहे स्तम्भमानं प्रचक्षते । सौवर्णाद्ये हस्तमानं जांतु पाये न किञ्चन ॥ २५॥ पादुकोपानही कार्यों अंगुलस्य प्रमाणतः। मञ्चादिकञ्चासनञ्च अंगुलेनैव कारयेत् ॥ २६ ॥ प्रतिमा | पीठिका चापि लिङ्गं वा स्तम्भमेव वा । गवाक्षाणां प्रमाणञ्च शिलामानं तथैव च ॥२७॥ खगचायुधादीनां प्रमाणं चांगुलानि | च । विषमाः शुभदाः पुंसां समाः सौख्यविनाशकाः ॥ २८ ॥ अंगुलस्य प्रमाणन्तु कथयामि समासतः । नवाटसप्तषःपूर्वा A अंगुलाः परिकीर्तिताः ॥ २९ ॥ त्रिविधस्यापि हस्तस्य प्रत्यकं कर्म दर्शितम् । ग्रामखेटपुरादीनां विभागोऽयमविस्तरात् ॥३०॥ | प्रमाण और शिलाका मान ॥ २७ ॥ खड़, चर्म और आयुध इनका प्रमाण अंगुलसेही होता है. विषम अंगुल पुरुषोंको सुखदायी और सम अंगुल पुरुषोंके सुखके नाशक होते हैं ॥ २८ ॥ अब संक्षेपसे अंगुलके प्रमाणको कहताहूं-नव आठ सात छ: पे हैं पूर्व जिनके ऐसे अंगुल कहे हैं ॥ २९ ॥ तीन प्रकारके भी हाथका प्रत्येक कर्म दिखाया है ग्राम खेट पुर आदिकोंका यह विभाग विना विस्तारसे है ॥ ३० ॥
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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