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शय्या कही है ॥ ७ ॥ सौ अंगुलकी शय्या राजाओंकी वडी कही है ॥ ८ ॥ राजाके कुमारोंकी शय्या नब्बे अंगुलकी और मंत्रियोंकी शय्या चौरासी ८४ अंगुलकी होती है. उससे बारह १२ अंगुल कम वलय और पर्यकके ऊपर कल्पना की हुई ।। ९ ।। अथवा २८ अंगुल कम पुरोहितों की शय्या होती है. उससे आधा और ८ अंश कम विष्टंभ ( पाया ) कहा है ॥ १० ॥ तीस ३० अंगुलके मानका आयाम ( चौडाई | और एक पादभर ऊँचाई कही है. संपूर्ण वर्णोंकी शय्या ८१ अंगुलकी कही है ॥ ११ ॥ सामन्तोंकी शय्या ९० अंगुल वा ८१ अंगुल कही शतांगुला नृपाणान्तु महती परिकीर्तिता ॥ ८ ॥ कुमाराणां तु नवतिः सा पड़ना तु मंत्रिणाम् । सा द्वादशोना वलयपयेङ्कोपरि कल्पिता ॥ ९ ॥ पुरोहितानां च तथा हीना धृत्यंगुलैस्ततः । अर्द्ध ततोऽष्टशीनं विष्टम्भः परिकीर्तितः ॥ १० ॥ आया माख्यंशमानं तु पादोच्छ्रायं तु निर्दिशेत् । सर्वेषां चैव वणीनामेकाशीतिमिता स्मृता ॥ ११ ॥ सामन्तानां तु नवतिः सैकाशीति मिता तथा । स्वदेहान्नातिदीर्घा सा न विस्तारा तथैव च ॥ १२ ॥ हीना रोगप्रदा दीर्घा दुःखदा सुखदा समा । पाषाणोर्निर्मितं यत्तु तद्गृहं मन्दिरं स्मृतम् ॥ १३ ॥ पक्केष्टकं वास्तुनाम भवनं हितमुत्तमम् । अनिष्टकैः सुमनन्तु सुधारं कर्दमेन तु ॥ १४ ॥ मानस्यं वर्द्धितं काष्ठेर्वत्रैश्च चन्दनं स्मृतम् । वस्त्रैश्च विजयं प्रोक्तं राज्ञां शिल्पिविकल्पितम् ॥ १५ ॥
है. वह शय्या न अपने देहसे लम्बी हो और न चौडी हो ॥ १२ ॥ अपने शरीर से हीन शय्या रोगको देती है और शरीरसे लम्बी दुःखको और समान शय्या सुखको देती है. पत्थरोंसे बनाया जो घर उसे मंदिर कहते है ॥ १३ ॥ पक्की ईंटोंसे बनाया जो घर है उसे भवन कहते हैं वह हित और उत्तम होता है. कच्ची ईंटोंसे जो बनाहो उसे सुमन और कीच वागार बनाहो उसे सुधार कहते हैं ॥ १४ ॥ काष्ठोंसे जो
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