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भली प्रकार शुद्धिसे एकवार मंदिरका आरंभ करना शुभ होता है ॥ १०६ ॥ अधोमुख नक्षत्र शुभदिन और शुभवासरमें और चन्द्रमा और तारागण इनकी अनुकूलतामें खनन करना शुभ होता है ॥ १०७ ॥ मागशिरसे लेकर तीन तीन मासोंमें पूर्व दक्षिण पश्चिम और उत्तर । दिशाओंमें क्रमसे राहु रहता है ॥ १०८ ॥राहुकी दिशामें स्तम्भके रखनेसे वंशका नाश और द्वार चढानेसे वहिका भय और गमन करनेमें कार्यकी हानि और गृहके आरंभमें कुलका क्षय होता है ॥ १०९॥ सूर्यवारसे लेकर क्रमसे नेक्रति उत्तर अग्नि पश्चिम ईशान दक्षिण वायव्य
अधोमुखे च नक्षत्रे शुभेऽह्नि शुभवासरे । चन्द्रतारानुकूल्ये च खननारम्भणं शुभम् ॥ १०७ ॥ त्रिषु त्रिषु च मासेषु मार्गशीर्षादिषु क्रमात् । पूर्वदक्षिणतोयेशपौलस्त्याशाक्रमादगुः ॥१०८ ॥ स्तंभे वंशविनाशः स्याद्वारे मा
वह्निभयं भवेत् । गमने कार्यहानिः स्यादूगृहारम्भे कुलक्षयः ॥१०९॥ रक्षःकुबेरामिजलेशयाम्यवायव्यकाष्टासुमा श्रा ४] च सूर्यवारात । वसेदगुश्चाष्टसु दिग्भचक्रे मुखे विवज्यों गमनं गृहं च ॥ ११०॥ शिरःखने विनाशः स्यान्मातापित्रोश्च KI पृष्टके । स्त्रीपुत्रनाशः पुच्छे तु गात्रे पुत्रविनाशनम् ॥ ११ ॥ कुक्षौ सर्वसमृद्धिः स्याद्धनधान्यसुतागमः । सिंहादिषु च
मासेषु आग्नेय्यां कुशिमाश्रितः॥ ११२॥ इन दिशाओंमें राहु बसता है, इन दिशाओंके चक्रमें मुखके विषे गमन और घरका बनाना उत्तम है ॥ ११ ॥ राहुके शिरके स्थानमें खनन क करे तो आत्माका नाश, पृष्ठभागमें खनन करनेसे माता पिताका नाश, पुच्छमें खनन करनेसे स्त्री-पुत्रका नाश, राहुगात्रमें खनन करनेसे धू
पुत्रका नाश होता है ।। १११ ॥ कुक्षिमें खनन करनेसे सम्पूर्ण ऋद्धि बढती है और धन पुत्रोंका आगमन होता है, सिंह आदि मासोंके विषे।