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इसके अनंतर हे विजेंद्र ! तिसी प्रकार दुर्गाके करनेको श्रवण करो जिसके ज्ञानमात्रसे निर्बलभी प्रबल होजाता है ।। १॥ जिस दुर्गके आश्रयके बलसे ही भूतलमें राजा राज्य करते हैं. राजाओंका विग्रह (लडाई) भी सामान्य शत्रुओंके संग दुगंके ही आश्रयसे होता है ॥२॥ विषम दुर्गम और घोर वक्र (टेढा) भीरू भयका दाता और वानरके शिरकी तुल्य ( समान ) रौब अलकमंदिर ॥ ३ ॥ ऐसा स्थानको विचारकर Vउसमें विषमदुर्गकी कल्पना (रचना) करे जिसका प्रथम परकोट मिट्टीका कहा है.दूसरा कोट जलका होजाता है ॥ ४ ॥ तीसरा-ग्रामकोट होता
अथातः शृणु विप्रेन्द्र दुर्गाणां करणं तथा । येन विज्ञातमात्रेण अबलः सबलो भवेत् ॥१॥ यस्याश्रयवलादेव राज्यं कुर्वन्ति भूतले । विग्रहं चैव राज्ञां तु सामान्यैः शत्रुभिस्सह ॥२॥ विषमं दुर्गमं घोरं वक्र भीरुं भयावहम् । कपिशीर्षसमं चैव रौद्रा दलकमन्दिरम् ॥३॥ स्थानं विचिंत्य विषमं तत्र दुग प्रकल्पयेत् । प्रथमं मृन्मयं प्रोतं जल को द्वितीयकम् ॥ ४ ॥ तृतीय ग्रामकोटं च चतुर्थ गिरिगह्वरम् । पञ्चमं पर्वतारोहं षष्ठं कोटं च डामरम् ॥ ५ ॥ सप्तमं वक्रभूमिस्थं विषमाख्यं तथाष्टमम् । चतुरस्रं चतुरं वर्तुलं च तथैव च ॥ ६॥ दीर्घद्वारद्वयाक्रांत त्रिकोणमेकमार्गकम् । वृत्तदीर्घ चतुर्दारमर्धचन्द्रं तथैव च ॥७॥ गोस्तनं च चतुर धानुषं मार्गकण्टकम् । पद्मपत्रनिभं चैव च्छवाकारं तथैव च ॥ ८॥ है, चौथा-गिरिगह्वर होता है. पांचवा-पर्वतारोह होता है, छठाकोट डामर होता है॥५॥ सातवां कोट वक्रभूमिमें होता है. आठवां-कोट | ५ विषम होता है चौकोर और वर्तुल (गोल) ॥ ६॥ दीर्घ जो दो द्वार उनसे आक्रांत (युक्त) हो त्रिकोण हो, जिसका एक मार्ग हो, वृत्त
गोल ) दीर्घ (लंबे) जिसके चार द्वार हों जो अर्द्धचन्द्राकार हो ॥७॥ गोके स्तनकी तुल्य जिसके चार द्वार हों धनुषाकार
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