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दित (टक ) करके सूत्रसे लपेटे वर्णमें श्वेतवर्ण हो वा चार वर्षों के युक्तवर्णका हो ऐसे सूत्रसे लपेटे ॥ २७ ॥ इन मन्त्रोंसे उस वृक्षकी यथा
योग्य प्रार्थना कर और आचार्य अथवा सूत्रधार रात्रिके समय उस वृक्षके समीप अधिवास (शयन) करे ॥ २८ ॥ विधिका ज्ञाता आचार्य न वृक्षका स्पर्श करके रात्रिके समय इस मन्त्रको उच्चारण करै कि, इस वृक्षमें जो भूत हैं उनके स्वस्ति (कल्याण) हो और उनको नम स्किार है ॥ २९ ॥ इस बलिको ग्रहण करके अपने वासका पर्यय आप करो अर्थात् अन्यत्र जा बसो प्रार्थना करके वर मांगे, हे वृक्षमें श्रेष्ठ !
मन्त्रैरेतैर्यथान्यायं प्रार्थयेत्तं पुनः पुनः । आचार्यः सूत्रधारश्च रात्रौ तमधिवास्य च॥२८॥स्पृष्ट्वा वृक्षमिमं मन्त्रं ब्रूयाद्रात्रौ विधान वित् । यानीह वृक्षे भूतानि तेभ्यः स्वस्ति नमोऽस्तु वः॥ २९ ॥ उपहारं गृहीत्वमं क्रियतां वासपर्ययः । प्रार्थयित्वा वरयते स्वस्ति तेऽस्तु नगोत्तम ॥ ३० ॥ गृहाथै वान्यकार्यार्थ पूजेयं प्रतिगृह्यताम् । परमानमोदकौदनदधिपल्लोलादिभिर्दशैः ॥ ३१ ॥ मद्यः कुसुमधूपैश्च गन्धैश्चैव तरुं पुनः ॥ सुरपितृपिशाचराक्षसभुजगासुरविनायकाश्च । गृहंतु मत्प्रयुक्तां वृक्ष संस्पृश्य बृयात् ॥३२॥यानीह भूतानि वसति तानि बलिं गृहीत्वा विधिवत्प्रयुक्तम् । अन्यत्र वासं परिकल्पयंतु क्षमन्तु तानद्य नमोऽस्तु तेभ्यः ॥३३॥ वृक्ष प्रभाते सलिलेन सिक्का मध्वाज्यलिप्तेन कुठारकेण । पूर्वोत्तरस्यां दिशिसनिकृत्य प्रदक्षिणं शेषमतो विहन्यात३४ । आपका कल्याण हो॥३०॥ धरके लिये वा अन्य कार्यके लिये इस पूजाको ग्रहण करो परम अन्न जलौदन दधि पल्लोक आदि दशौसे ॥३१॥ फिर मद्य पुरुष थप गन्ध इनसे तरुकी पूजा करके कहे कि, सुर पितर पिशाच राक्षस सर्प असुर विनायक ये सब मेरी दी हुई पूजा बलिको ग्रहण करो और फिर वृक्षका स्पर्श करके कहे कि ॥ ३२ ॥ जो भूत इस वृक्षमें बसते हैं वे विधिसे दीहुई मेरी बलिको ग्रहण करके अन्यस्थानमें वासको स्वीकार करो और क्षमा करो अब उनको नमस्कार है॥३३ ॥ प्रातःकालके समय वृक्षको जलसे सींचकर शहद