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एकभी ग्रह बृहस्पति बुध शुक्र शनैश्चर अपने उच्चभवनके वा अपने भवनके हो ॥ ३०॥ केन्द्र वा त्रिकोणमें होय तो मनुष्यों के लिये वह जल स्थिर और शुभदायी होता है ।। ३१ ॥ जो पुण्यात्मा मनुष्य नगरमें जलकी शालाको बनाते हैं वे तबतक विष्णुके संग आनन्द भोगते हैं जबतक पृथिवीमण्डलपर जल रहता है ॥ ३२ ॥ इति पं० मिहिरचन्द्रकृतभाषाविवृतियुते वास्तुशास्त्रे जलाशयादिकरणे अष्टमो ऽध्यायः॥ ८॥ इसके अनन्तर हे विप्रेन्द्र ! (काष्ठ) वृक्षके छेदनकी विधिको श्रवण करो. देवदारु चन्दन शमी (छोंकर ) महुआ ये वृक्ष ॥१॥ केन्द्रत्रिकोणोपगता नराणां शुभावहं तत्सलिलं स्थिरं स्यात् ॥ ३१॥ ये कुर्वति नराः पुण्याः पुरे पानीयशालिकाम् । विष्णुना सह मोदते यावद्भूमण्डले जलम् ॥३२॥ इति वास्तुशास्त्रे जलाशयादिकरणेऽष्टमोऽध्यायः ॥८॥ अथातः शृणु विप्रेन्द्र दारूणां छेदने विधिम् । सुरदारुचन्दनशमीमधूकतरवस्तथा ॥३॥ ब्राह्मणानां शुभा वृक्षाः सर्वकर्मसु शोभनाः। क्षत्रियाणां तु खदिरबिल्वार्जुनकशिशिपाः॥२॥शालतूनीकसरला नृपवेश्मनि सिद्धिदाः । वैश्यानां खादिरं सिन्धुस्यन्दनाश्च शुभवहाः ॥३॥ तिन्दुकार्जुनशाशाश्व वैसराम्राश्च कण्टकाः । ये चान्ये क्षीरिवृक्षाश्च ते शूद्राणां शुभावहाः॥४॥ ब्यङ्गराशिगते सूर्ये माघे भाद्रपदे तथा । वृक्षाणां छेदन काष्टसञ्चयाथै न कारयेत् ॥५॥ ब्राह्मणोंके लिये शोभन और सब काँमें श्रेष्ठ होतेहैं और क्षत्रियोंके खदिर बेल अर्जुन शिंशप (शिरस) ॥ २ ॥ शाल तुनिका सरल ये
वृक्ष राजाओंके मंदिरोंमें सिद्धिके दाता होते हैं और वेश्योंको खदिर सिंधु स्यंदन ये शुभदाता होते हैं ॥ ३ ॥ तिंदुक अर्जुन शाश वैसर जाआम, कंटक और जो अन्य क्षीरवृक्ष हैं वे शद्रोंको शुभदायी कहे ॥४॥ द्विस्वभावराशिके सूर्यमें माघमें और भाद्रपदमें काष्ठसंचयके लिये ||