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भागको छोडकर आदि अन्तमें जलस्थान होय तो सपत्नीके विनाशको करता है ॥१८॥ पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिणके जो छिद्र और हार है || उनके मध्यस्थान जलभागमें होय तो शोक मरण और बन्धुओंके नाशको करते हैं. यह बात मध्यके हारों में विचारने योग्य है ॥ १९ ॥ जा हारके सूत्र आदि अन्तरमें गतहों और हारके मध्यभागमें जलाशय होय तो शुभ होता है. इसी प्रकार हारके उत्तरोत्तर क्रमसे जलाशय भ्राता और कलत्रआदिको श्रेष्ठ कहे हैं ॥ २०॥ यदि दिशाके मध्य में स्थित जलाशय होय तो मनुष्योंको शुभदायी होते हैं । व्यंगभागमे होय तो पूर्वापरौ चोत्तरयाम्यगेषु च्छिद्रेषु हारेष्वपि मध्यभागे। कुर्वति शोकं वबन्धुनाशं हारेषु मध्येष्वपि चिन्त्यमेतत् ॥ १९ ॥ आद्यन्तयोहारगतेषु सूत्रसर्वेषु हारापगते शुभा स्यात् । भ्रातृन्कलवादियथोत्तराणि हारस्य दारोत्तरतोत्तरस्य ॥ २०॥ दिङ्मध्य संस्थाः शुभदा नराणां व्यंगेषु बन्धं पशुपत्तिनाशम् । याम्योत्तरं हीनधनं करोति हीनोदकं हीनधनं करोति ॥ २१ ॥ चतुर्थी एमगैः पापैर्लनगे वा खलग्रहे । चन्द्रेऽष्टमे तदा कर्ता म्रियते मासमध्यतः ॥२२॥ केन्द्रपापग्रहैयुक्ते अष्टमे च व्ययेऽपि वा । धर्म स्थानगतैर्वापि तज्जलं क्षीयते चिरात्॥२३॥केन्द्रगैः सौरिभौमार्केरष्टमस्थे निशाकरे । तजलं वर्षमध्ये तुन तिष्ठति जलाशये॥२४॥ बन्धन पशु और पत्तियोंका नाश होता है. दक्षिण उत्तरमें जलाशय होय तो धनको हीन करता है, न्यून जल होय तो भी धनको हीन करता है ॥ २१॥ चौथे आठवें स्थानमें पापग्रह होय लग्नमें खलग्रह होय चन्द्रमा अष्टम होय तो गृहका कर्ता एक मासमें माना है ॥ २२ ॥ केन्द्र पापग्रहों से युक्त होय अथवा अष्टम ८ व्यय १२ स्थानमें होय तो थोडेही दिनमें जल क्षीण (नष्ट) होता है ॥ २३ ॥ शनैश्चर मंगल सूर्य ये के केंद्रस्थानमें हों चन्द्रमा अष्टम स्थानमें हो ऐसे लग्नमें बनवाये जलस्थानमें वर्षदिन भी जल नहीं टिकता ॥२४॥