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________________ बलिकर्म इनमें दिक्साधन करे ॥ ४८ ॥ कृत्तिकाके उदयमें और श्रवणके उदयमें प्राची दिशा होती है, चित्रा और स्वातीके अन्तरमें प्राची|| होती है और सूर्यकी स्थिति में दिन प्राची होती है ॥४९॥ यदि श्रवण पुष्य और चित्रा स्वातीका जो अन्तर यह प्राची दिशाका रूप है। जब दण्डमात्र सूर्यका उदय होचुका हो ॥ ५० ॥ द्वादशांगुलके मानसे वा शंकुसे कल्पना करे, शिलाका तल भलीप्रकार शुद्ध हो और छ। लिपा हो और समान हो ॥५१॥ इष्ट शंकुके प्रमाणसे समान मण्डलको लिखे, उसके मध्यमें शंकको स्थापन करे और दो रेखावाले वृत्तको छ कृत्तिकोदयतः प्राची प्राची स्याच्छ्वणोदये । चित्रास्वात्यन्तरे प्राची दिनप्राची खेः स्थिता ॥ १९ ॥ यदि वा श्रवणं पुष्यं | चित्रास्वात्योर्यदन्तरम् । एतत्प्राचीदिशारूपं दण्डमावोदिते खौ॥५०॥ द्वादशाङ्गुलमानेन शकुना वा प्रकल्पयेत् । शिलातले । सुसंशुद्ध सुलिप्ते समताङ्गते ॥५१॥ इएशकुप्रमाणेन सममण्डलमालिखेत् । तन्मध्ये स्थापयेच्छकुं वृत्तं कृत्वा द्विरेखिकम् । द्युतिप्रवेशाय गमस्थाने चिह्न प्रकल्पयत् । अपरेऽह्नि च तन्मध्ये शंकुमारोपयेत्ततः ॥ ५२ ॥ तत्र चिह्न च तन्मानं मानयोय दनन्तरम् । तेनानुमानेन विषुवदिवसान्तं च साधयेत् ॥५३॥ यावन्तो व्यवह्रियन्ते तावद्वत्ते विनिक्षिपेत् । शोधयेद्योजयेदापि दक्षिणोत्तरयोयोः ॥५४॥ क्रान्त्योर्यदवशिष्यत तत्प्राची समुदाहृता ॥ ५५॥ | अर्थात गोल आकारको बनाकर कातिके प्रवेशके लिये गमनके स्थापनमें चिहकी कल्पना करे. फिर दसरे दिन उसके मध्यमें शंकुका आरोथ हैपण करै (रक्खे)॥५२॥ उसमें चिर और उसका जो मान उन दोनों मानोंके जो अनंतर (समीप) उसी अनुमानमे विषुवत् (तुला मप) संक्रांतिके अंतके दिनतक साधन करे ॥ ५३॥ जितने चिहोंका व्यवधान हो उतने वृत्तमें डारदे उनका शोधन करै वा योजन दक्षिण और उत्तर दोनोंमें करे अर्थात घटादे वा मिलादे ॥ ५४ ॥ क्रांतियोंके मध्य में जो शेष रहे वही प्राची दिशा कही है ॥ ५५॥
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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