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वि.प्र.
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नामके घरमं दक्षिणका और विपुल नामकं घरमें पूर्वका द्वार वर्जित है ॥ २७॥ चार जिममें द्वार हों ऐसा विजय नामका घर जो चारों तरफ अलिन्दोंसे युक्त है वह सर्वतोभद्रनामका गृह राजाओंको सिद्धि करनेवाला कहा है ॥ २८ ॥ अव पन्द्रहवें प्रकारको कहते हैं-अब उस. द्वारचक्रको कहताहूं जो पहिले ब्रह्माने कहा है कि, सूर्यके नक्षत्रसे चार नक्षत्र द्वारके उ.पर रक्खै ॥ २९ ॥ दो दो नक्षत्र कोणमें रक्खे और दो दो नक्षत्र दोनों शाखाओंमें रक्खे और नीन नक्षत्र निचले भागमें रक्खे और चार नक्षत्र मध्यमें रक्खे ॥ ३० ॥ ऊर्ध्वके नक्षत्रों द्वार विजयाख्य चतुरमलिन्दैः सर्वतोयुतम् । राज्ञां सिद्धिकरं प्रोक्तं सर्वतोभद्रसंज्ञकम् ॥२८॥ अथ पञ्चदशः ॥ द्वारचक्र प्रवक्ष्यामि यदुक्तं ब्रह्मणा पुरा । सूर्यभाद्भचतुष्कं तु द्वारस्योपरि विन्यसेत् ॥२९॥ द्वे द्वे कोण प्रदातव्यं शाखायुग्मे द्वयं द्वयम् । अधश्च त्रीणि देयानि वेदा मध्ये प्रतिष्टिताः ॥३०॥ राज्यं स्यादूर्ध्वनक्षत्रे कोणेपूद्रासनं भवेत् ॥ शाखायां लभते लक्ष्मी ध्वजे चैव मृतिर्भ वेत् ॥ ३१ ॥ मध्यस्थेषु भवेत्सौख्यं चिन्तनीयं सदा बुधैः । अश्विनी चोत्तराहस्ततिष्यश्रुतिमृगाः शुभाः । स्वातौ पूष्ण च रोहिण्यां द्वारशाखाबरोपणे ॥ ३२ ॥ पञ्चमी धनदा चैव मुनिनन्दावसौ शुभम् । प्रतिपत्सु न कर्तव्यं कृते दुःखमवाप्नुयात् । द्वितीयायां द्रव्यहानिः पशुपुत्र विनाशनम् ॥ ३३॥ बनवावे तो राज्य होताहै, कोणके नक्षत्रोंमें उद्वासन (निकास), शाखाके नक्षत्रमें लक्ष्मीकी प्राप्ति और ध्वजाके नक्षत्रोंमें मरण होता है , ||॥ ३१ ॥ मध्यके नक्षत्रोंमें सुख होता है यह चक्र बुद्धिमान् मनुष्योंको सदा विचारने योग्य है-अश्विनी उत्तरा तिप्य (विशाखा ) श्रवण
मृगशिर ये नक्षत्र शुभ हैं, स्वाती रेवती रोहिणी द्वार शाखाके स्थापनमें शुभ होते हैं ॥ ३२ ॥ पंचवी धनकी दाता होती है और सप्तमी
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