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वि. प्र. प्रासादके अनुसार उत्तम मंडपोंको कहता हूं ॥ १२३ ॥ श्रेष्ठ मध्यम कनिष्ठ भेदसे अनेकप्रकारके मंडप बनवावे उनको मैं नाम लेलेकर कहभा . टी.
ताई-हे द्विजोंमें श्रेष्ठो ! तुम सुनो ॥ १२४ ॥ पुष्पक, पुष्पभद्र, सुवृत्त, अमृतनंदन, कौशल्य, बुद्धिसंकीर्ण, गजभद्र, और जयावह ॥ १२५ ॥ ॥६०॥ठाश्रीवक्ष, विजय, वास्तुक, अर्णवतंधर, जयभद्र, विलास, सश्लिष्ट, शत्रमर्दन ॥ १२६ ॥ भाग्यपंच, नंदन, भानव, मानभद्र, सुग्रीव, हर्षण, कर्णिक
कार, पदाधिक ॥ १२७ ॥ सिंह, यामभद्र और शत्रुघ्न ये सत्ताईस मंडप शास्त्रकारोंने कहे हैं अब हे ब्राह्मणो ! इनके लक्षणोंको श्रवण करो।
विविधा मण्डपाः कार्याः श्रेष्ठमध्यकनीयसः । नामतस्तान् प्रवक्ष्यामि शृणुध्वं द्विजसत्तमाः ॥ १२४॥ पुष्पकः पुष्पभद्रश्च सु | वृत्तोऽमृतनन्दनः। कौशल्यो बुद्धिसङ्कीर्णो गजभद्रो जयावहः ॥ १२५॥ श्रीवृक्षो विजयश्चैव वास्तुकोऽर्णश्रुतन्धरः । जयभद्रो
विलासश्च सशिष्टः शत्रुमर्दनः॥१२६॥ भाग्यपञ्चो नन्दनश्च भानवो मानभद्रकः । सुग्रीवो हर्षणश्चैव कर्णिकारः पदाधिकः॥१२७॥ सिंहश्च यामभद्रश्च शत्रुघ्नश्च तथैव च । सप्तविंशतिराख्याता लक्षण शृणुत द्विजाः ॥ १२८ ॥ स्तम्भा यत्र चतुष्पष्टिः पुष्पकः स उदाहृतः । द्वापष्टिः पुष्पभद्रस्तु षष्टिस्तु वृत्त उच्यते ॥ १२९ ॥ स्तभोऽष्टपञ्चाशद्वापि कथ्यतेऽमृतनन्दनः । कौशल्योऽथ द्विपञ्चाशच्चतुःपंचशतात्पुनः॥१३०॥नामा तु बुद्धिसंकीणों द्विहीनो राजभद्रकः । जयावहस्त्रिपंचाशच्छीवत्सस्तु द्विहीनकः॥१३१॥ ॥ १२८ ॥ जिसमें चौसठ ६४ स्तंभ हों उसको पुष्पक कहते हैं, जिसमें बासठ ६२ स्तम्भ हों उसे पुष्पभद्र और जिसमें साठ ६० स्तम्भ हों उसे वृत्त कहते हैं॥ १२९ ॥ जिसमें अठावन ५८ स्तम्भ हों उसको अमृतनंदन कहते हैं. जिसमें बावन स्तम्भ हों उसे कौशल्य कहते हैं, चौबन ५४ स्तंभवालेको ॥ १३० ॥ बुद्धिसंकीर्ण कहते हैं. उसमें दो स्तम्भ न्यूनसे हों तो राजभद्रक कहते हैं. तिरपन ५३ स्तम्भवालेको