________________ व्याख्या-'इय' ति एवं कम्मपगडीपगर्य-कम्मप्पगडिमाहिगारं, संखेबुदिह-संखेवेण कहिये, “णिच्छियमहत्य' ति परिच्छिन्नमहत्य, महार्यता कथमितिचेत् ? माइ, एतेण बीपण सेसोवि महमयो सहमहिगम्मद त्ति, जो पुरिसो 'उबजुजा' भुञ्जो भुजो चिंतेइ, सो पुरिसो 'गाहिति' जाणिहिति 'बंधमोक्सट्ट' बंधमोक्लसकर्व बन्धमोझार्थमिति // 106 // * // इति परमर्षिश्रीमच्छीवशर्मसूरिप्रवरसंदृब्धं बन्धशतकं सचूर्णिकं समाप्तम् //