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________________ यतिख समुच्चय. ॥ ४॥ सरचिय कुएंतो॥ ११॥ सहसा असहचारी परपमायमि जो पमइ पहा । खप्तमित्तिष ण किरिया सलाहणिका हवे तस्स ॥ ११३ ॥ दवाइनाएनिणं अवमन्नतो गुरुं असकचारि जो। सिवनश्व कुएंतो हिंम संसाररमि ॥११॥ हवइ सकारंजो अतुक्करिसजणएण कम्मेण । निरणेण साणुबंधं एजार पुण एसणिजं च ॥ ११५ ॥ संघयणादणुरूवे सकारंजे श्र साहए बहुध । चरणं निवमझ न पुणो असंजमो तेणिमो गरुढ ॥ ११६॥ संघयणाईश्राखंबणं तु सिढिवाएजं चरणघाई। सकारंजाण तयं तखुड्डिकर जनयिं ॥ ११७ ॥ संघयणकाखबखदूसमारयाखवणा चित्तूणं । सबं चिय णियमधुरं णिरुजामाउ पमुञ्चति ॥११०॥ कालस्स य परिहाणी संजमजुग्गाणस्थि खित्ताई। जयणा वद्दिश्रवण र जयणा जंजए अंग ॥ ११ ॥ जायइ गुणेसु रागो पढम संपत्तदंसएस्सेव । किं पुण संजमगुण अहिए ता तंमि | वत्त ॥ १० ॥ गुणवुद्धि परग्गयगुणरत्तो गुणसवं पि संसे । तं चेव पुरो काठ तग्गयदोस उवेहे ॥११॥ जह अश्मुत्तयमुणिणो पुरो कयं श्रागमेसिनहत्तं । घेराण पुरो न पुणो वयखखि वीरणाहेणं ॥ १२ ॥ एत्तोच्चिय किश्कम्मे अहिगिचाखंबणं सुभमुदयं । गुणखेसो विहिगढ जंजणिशंकप्पनासंमि ॥ १५३ ॥ दसणनाणचरित्तं तवविणयं जत्थ जत्तिकं पासे । जिणपन्नत्तं जत्ति पूरए तं तहिं जावं ॥ १४ ॥ परगुणसंसा उचिया अनासाहारणत्तणेव तहा । जह विहिया जिणवश्णा गुणनिहिणा गोश्रमाईणं ॥ १२५ ॥ परगुणगहणावेसो जावचरित्तिस्स जह जवे पवरो। दोसखवेण विनिश्रणं जहा गुणे निग्गुणे गुण ॥१६॥पनिबंधस्स न हेऊ णियमा एयस्स होइ गुणहीणो । सयणो वा कोसीसो वा गणिबर्ड वा जनणि ॥१२॥ सीसो सनिखठवागणिवर्ड वा नसोग्गई। जे तत्थ नाणदसणचरणा ते
SR No.034179
Book TitleAdhyatmasara Devdharm Pariksha Adhyatmopanishad Adhyatmik Khandan Satik Yatilakshan Samucchay Nayrahasya Naypradip Nayoapdesh Savchuri Jain Tark Paribhasha Gyanbindu
Original Sutra AuthorYashovijay
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1909
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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