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यतिख
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| तं खलु फुरु पचे पत्तानि वेिसमहिगिच्चा ॥ ८० ॥ इहरा उ दाणधम्मे संकुइए होइ पवयणुड्डाहो । मिनुत्तमोहजा इय | एसी देसणासुद्धा ॥ ८१ ॥ इयरेसु वि विसएसु जासा गुणदोसजाए एवं। जासइ सबं सम्मं जह जणि खीएदोसेहिं ॥ ८२ ॥ गुरुणा य श्रणुषा गुरुजावं देस लढुं जम्हा । सीसस्स हुंति सीसा ए ढुंति सीसा असी सस्स ॥ ८३ ॥ सत्यघुणा वि तीरइ मन्त्रत्थेव सासिद्धं सबं । सदं नो जंपइ जमेस श्रहच्च जणि च ॥ ८४ ॥ जं च ए सुत्ते विहिां य | परिसिद्धं जांमि चिररूढं । समइविगप्पियदोसा तं पि ए दूसंति गीयत् ॥ ८५ ॥ संविग्गा गीयतमा विहिर सिया पुबसू रिण श्रासी । तददू सिमायर इसई को शिवारे ॥ ८६ ॥ साहसमेचं जं उस्सुत्तपरूवणाकमु विवागं । जाणते हि विहिताइ शिद्दोसा सुत्त जत्थे ॥ 09 ॥ हिययावासाईचं गारवर सिश्रा गहित्तु मुझजणं । श्रालंबणं श्रपु पारंति पमायगत्तंमि ॥ ८८ ॥ श्रलंबणा नरि लोगो जीवस्स अजयकामस्स । जं जं पिछइ लोए तं तं लंबणं कुइ ॥ ८ ॥ जो जं सेवइ दोसं संणिहिपमुहं तु सो श्रनिवि । ठगवे गुणमहेढं श्रववायपयं पुरो काढं ॥ ए८ ॥ परिहरइ जं च दोसं सछंद विहार अनिवि । कप्पियसेवाण विदु लुंपइ तं कोई परिणी ॥ १ ॥ तं पुण विसुअसा सुसंवायं विणा ण संसंति । श्रवही रिजण नवरं सुश्राणुरूवं परूविंति ॥ २ ॥ नवइसइ धम्मगुनं हि कंखी | अप्पणो परेसिं च । पत्तापत्तविवेगो हि कंखित्तं च विहइ ॥ ए३ ॥ पतंमि देखणा खलु पियमा कञ्जाणसाहणं होई । कुं अपत्तपत्ता विशिवायसहस्सकोमी ॥ ए४ ॥ विफला इमा अपत्ते स्सलप्पा तर्ज जर्ज णिश्रा । पढमे कुठे बितिए मूढे वुग्गाहिए तए || ५ || श्रमे घने हित्तं जहा जलं तं घरं विणासेइ । इय सिद्धतरहस्सं अप्पाहारं
समुच्चय.
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