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________________ यतिख ॥ ७३ ॥ | तं खलु फुरु पचे पत्तानि वेिसमहिगिच्चा ॥ ८० ॥ इहरा उ दाणधम्मे संकुइए होइ पवयणुड्डाहो । मिनुत्तमोहजा इय | एसी देसणासुद्धा ॥ ८१ ॥ इयरेसु वि विसएसु जासा गुणदोसजाए एवं। जासइ सबं सम्मं जह जणि खीएदोसेहिं ॥ ८२ ॥ गुरुणा य श्रणुषा गुरुजावं देस लढुं जम्हा । सीसस्स हुंति सीसा ए ढुंति सीसा असी सस्स ॥ ८३ ॥ सत्यघुणा वि तीरइ मन्त्रत्थेव सासिद्धं सबं । सदं नो जंपइ जमेस श्रहच्च जणि च ॥ ८४ ॥ जं च ए सुत्ते विहिां य | परिसिद्धं जांमि चिररूढं । समइविगप्पियदोसा तं पि ए दूसंति गीयत् ॥ ८५ ॥ संविग्गा गीयतमा विहिर सिया पुबसू रिण श्रासी । तददू सिमायर इसई को शिवारे ॥ ८६ ॥ साहसमेचं जं उस्सुत्तपरूवणाकमु विवागं । जाणते हि विहिताइ शिद्दोसा सुत्त जत्थे ॥ 09 ॥ हिययावासाईचं गारवर सिश्रा गहित्तु मुझजणं । श्रालंबणं श्रपु पारंति पमायगत्तंमि ॥ ८८ ॥ श्रलंबणा नरि लोगो जीवस्स अजयकामस्स । जं जं पिछइ लोए तं तं लंबणं कुइ ॥ ८ ॥ जो जं सेवइ दोसं संणिहिपमुहं तु सो श्रनिवि । ठगवे गुणमहेढं श्रववायपयं पुरो काढं ॥ ए८ ॥ परिहरइ जं च दोसं सछंद विहार अनिवि । कप्पियसेवाण विदु लुंपइ तं कोई परिणी ॥ १ ॥ तं पुण विसुअसा सुसंवायं विणा ण संसंति । श्रवही रिजण नवरं सुश्राणुरूवं परूविंति ॥ २ ॥ नवइसइ धम्मगुनं हि कंखी | अप्पणो परेसिं च । पत्तापत्तविवेगो हि कंखित्तं च विहइ ॥ ए३ ॥ पतंमि देखणा खलु पियमा कञ्जाणसाहणं होई । कुं अपत्तपत्ता विशिवायसहस्सकोमी ॥ ए४ ॥ विफला इमा अपत्ते स्सलप्पा तर्ज जर्ज णिश्रा । पढमे कुठे बितिए मूढे वुग्गाहिए तए || ५ || श्रमे घने हित्तं जहा जलं तं घरं विणासेइ । इय सिद्धतरहस्सं अप्पाहारं समुच्चय. ॥ ७३ ॥
SR No.034179
Book TitleAdhyatmasara Devdharm Pariksha Adhyatmopanishad Adhyatmik Khandan Satik Yatilakshan Samucchay Nayrahasya Naypradip Nayoapdesh Savchuri Jain Tark Paribhasha Gyanbindu
Original Sutra AuthorYashovijay
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1909
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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