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यतिल०
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एकवायदीयतं । परिबंधे वि न कश्या एमेव मुणिस्स सुजोगे ॥ ४८ ॥ अपयट्टो वि पयट्टो जावेणं एस जेण तस्सत्ती । अरकसिया निविमा कम्मरक वसमजोगाउं ॥ ४९ ॥ निरर्ज बारसन्नू किंचि अवत्थंग असुहमन्नं । जुंजइ तम्मि न रखइ सुनो सालसो धणि ॥ २० ॥ इय सुधचरणसहि सेवतो दब विरुद्धं पि । सहागुणेण एसो न जावचरणं श्रइक्कमइ ॥ ५१ ॥ श्रवदपन्नाजचिं नावं पाखेलमायरस्काए । तीए चेव ए हाणी सुकेवलिया जर्ज श्रिं ॥ ५२ ॥ चिरिकलबास मावयसरेणुकंटगत बहुश्रजले । लोगो वि नि पहे को बिसेसो जयंतस्स ॥ ५३ ॥ जयाजयां च गिदी सचित्तमी से परित्तांते । न विजाणंति यासि वहपन्ना यह विसेसो ॥ २४ ॥ श्रवि ज | मरणजया परिस्समनयाज ते विवइ । ते गुणदयापरिणया मुरकल मिसी परिहरति ॥ एए ॥ विसिमि वि जोगंमि बाहिरे होइ विदुरया इहरा। सिद्धस्स उ संपत्ती अफला जं देसिया समए ॥ २६ ॥ इकमि वि पाणिवहंमि देसि सुमहंतरं समए । एमेव रिफला परिणामवसा बहुविहीया ॥ २७ ॥ जे जत्तिश्रा य हेऊ जवस्स ते चैव तत्तिश्रा मुरके । गणलाई श्रा सोगा एहवि पुन्ना नवे तुला ॥ ५८ ॥ इरिश्रावदिश्राईश्रा जे चैव दवंति कम्मबंधाय । अजयाणं ते चैव न जयाण शिवाएगमणाय ॥ ५ए ॥ एगते सेिहो जोगे सा देसि विही वा वि । दलिधं पप्प हिसेहो हुआ विही वा जहा रोगे ॥ ६० ॥ जंमि णिसेविते श्रश्रारो हुआ कस्सइ कया वि । तेणेव य तस्स पुणो कया सोही हवाहि ॥ ६१ ॥ श्रणुमित्तो वि न कस्सइ बंधो परवत्थुपञ्च जणि । तह वि खलु जयंति जई परिणाम विसो| हिमिता ॥ ६२ ॥ जो पुणे हिंसाययाइएरा वट्ट तणुपरीणामो । छो य त लिंग होइ त्रिमुद्धस्स जोगरस ॥ ६३ ॥
समुच्चय.
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