SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यतिल० ॥ ७२ ॥ एकवायदीयतं । परिबंधे वि न कश्या एमेव मुणिस्स सुजोगे ॥ ४८ ॥ अपयट्टो वि पयट्टो जावेणं एस जेण तस्सत्ती । अरकसिया निविमा कम्मरक वसमजोगाउं ॥ ४९ ॥ निरर्ज बारसन्नू किंचि अवत्थंग असुहमन्नं । जुंजइ तम्मि न रखइ सुनो सालसो धणि ॥ २० ॥ इय सुधचरणसहि सेवतो दब विरुद्धं पि । सहागुणेण एसो न जावचरणं श्रइक्कमइ ॥ ५१ ॥ श्रवदपन्नाजचिं नावं पाखेलमायरस्काए । तीए चेव ए हाणी सुकेवलिया जर्ज श्रिं ॥ ५२ ॥ चिरिकलबास मावयसरेणुकंटगत बहुश्रजले । लोगो वि नि पहे को बिसेसो जयंतस्स ॥ ५३ ॥ जयाजयां च गिदी सचित्तमी से परित्तांते । न विजाणंति यासि वहपन्ना यह विसेसो ॥ २४ ॥ श्रवि ज | मरणजया परिस्समनयाज ते विवइ । ते गुणदयापरिणया मुरकल मिसी परिहरति ॥ एए ॥ विसिमि वि जोगंमि बाहिरे होइ विदुरया इहरा। सिद्धस्स उ संपत्ती अफला जं देसिया समए ॥ २६ ॥ इकमि वि पाणिवहंमि देसि सुमहंतरं समए । एमेव रिफला परिणामवसा बहुविहीया ॥ २७ ॥ जे जत्तिश्रा य हेऊ जवस्स ते चैव तत्तिश्रा मुरके । गणलाई श्रा सोगा एहवि पुन्ना नवे तुला ॥ ५८ ॥ इरिश्रावदिश्राईश्रा जे चैव दवंति कम्मबंधाय । अजयाणं ते चैव न जयाण शिवाएगमणाय ॥ ५ए ॥ एगते सेिहो जोगे सा देसि विही वा वि । दलिधं पप्प हिसेहो हुआ विही वा जहा रोगे ॥ ६० ॥ जंमि णिसेविते श्रश्रारो हुआ कस्सइ कया वि । तेणेव य तस्स पुणो कया सोही हवाहि ॥ ६१ ॥ श्रणुमित्तो वि न कस्सइ बंधो परवत्थुपञ्च जणि । तह वि खलु जयंति जई परिणाम विसो| हिमिता ॥ ६२ ॥ जो पुणे हिंसाययाइएरा वट्ट तणुपरीणामो । छो य त लिंग होइ त्रिमुद्धस्स जोगरस ॥ ६३ ॥ समुच्चय. ॥ ७२ ॥
SR No.034179
Book TitleAdhyatmasara Devdharm Pariksha Adhyatmopanishad Adhyatmik Khandan Satik Yatilakshan Samucchay Nayrahasya Naypradip Nayoapdesh Savchuri Jain Tark Paribhasha Gyanbindu
Original Sutra AuthorYashovijay
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1909
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy