SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ म०प० ४८ ॥ जे जीवोए सम्यक प्रकारे तप कयों हाये से जीव पोताना आकरां पाप कर्म वाळवाने समर्थ थइ शके ॥ ९० ॥ इक पंयि मरणं ॥ परिवभि सुपुरिसो असंतो ॥ खिप्पं तो मरणाएं | काही अंतं प्रांताणं ॥ ५१ ॥ एक पीडत मरणने आदरीने पुरुष असंभ्रांत थको जलदीयी ते अनंत मरणोनो अंत करशे ॥९१॥ किं तं पंमिय मरणं ॥ काशिव आलंबणाणि नशिआणि ॥ एयाई नाऊ ॥ किं प्रायरिया पसंसंति ॥ २ ॥ ते के पंडित मरण अने तेनां केवां आलंबन का छे ए वघां जाणीने आचार्यो धुं प्रशंसे ॥ ९२ ॥ सण पानवगमं ॥ श्रालंबणं जाण भावणान् ॥ एथाई नाऊ | पंमिय मरणं पसंसंति ॥ ए३ ॥ पादोपगम अणशण, ध्यान अने भावनाओ ते आलंबन छे, एटलां वानां जाणीने ( आचार्यो) पंडित मरणने प्रशंसे छे ॥ ९३ ॥ इंदिय सुहसानन ॥ घोर परीसद पराइ अपरको ॥ कय परिकम्म की वो || मुजइ धारादला काले ॥ ए४ ॥ निजी विदेि पन्नी.
SR No.034177
Book TitleMurkhshatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj Shravak
PublisherHiralal Hansraj Shravak
Publication Year1926
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy