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सुनिया स || मोह मदल्लं सुकम्म निस्सद्धं ॥ दमसु मुणिंद संदोदे || निंदिए इंदिय मइँदे ॥ ए६ ॥
मोहे करीने मोटा अने शुभ कर्मने शल्य समान एवा नियाण शल्यने तुं स्याग कर, अने मुनिंद्रोना समुद्दे निधी छे एवा इंद्रियरूपी मृगेंद्राने तुं दम ॥ ५६ ॥
fare सुदावाए । विश्न्न निरयाइ दारुणावाए ॥
हसु कसायपिसाए ॥ विसय तिसाए लय सहाए ॥ ५७ ॥
निर्वाण सुखने अंतराय भूत अने नरकादिकने विषे भयंकर पात जेथी थाय छे एवा कषायरुपी पिशाचने हण, जे विषय तृष्णाना हमेशां सखाइआ छे ॥ ५७ ॥
काले पहुते ॥ सामन्त्रे सावसेसिए इन्हिं ॥
मोद महारिन वारण | असिलहिं सुरासु प्रणुसहिं ॥ ५८ ॥
काल नहीं पहोंचते अने हमणां थोडं चारित्र बाकी रहे छते मोह रूपी महा बैरीने विदारखाने माटे स्वदूग अने लाठी (डांग ) समान हित शिक्षाने तुं सांभल ॥ ५८ ॥
संसार मूल बीयं ॥ मिछत्नं सवदा विवछेद ||
संमने दढचित्तो ॥ होसु नमुक्कार कुसलो म ॥ ५ ॥
KANNAKAKARAAN AMANANMANA