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पयनो.
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STOR-फिर
अणशण भाराधनाना लाभ यकी पोताने कृतार्थ माननाराने, पापरुपी कादवने ओलंगवाने लाकडी सभत्तमान एवी शीखामण आचार्य दे ॥५२॥ .
कुग्गह परुढ मूलं ॥ मूलाचविंद वन मिचत्तं ॥
नावेसु परमतनं ॥ संमत्तं सुत्त नीइए ॥ ३ ॥ कुग्रह (कदाग्रह) कपी बध्युछे मूल जेनुं एवा मिथ्यात्वने मूल थकी उखडी नांखीने हे वत्स परम तस्व एवा सम्यक्त्वने सूत्रनी नीतिए भाव्य ॥ ५३॥
जत्तिं च कुणसु तिवं ॥ गुणाणुराएण वीयरायाणं ॥
तह पंच नमुक्कारे ॥ पवयणसारे रइं कुणसु ॥ ५४॥ वली गुणना अमुरागवडे वितराग भगवाननी तीव्र भक्ति कर ।। तथा प्रवचननो मार एवा पांच नमस्कारने विष अनुराग कर ॥ ५४॥
सुविहिय हिय निझाए ॥ सझाए नधुन सया होसु ॥
निच्चं पंच महब्बय ॥ रकं कुण पायपञ्चकं ॥ ५५ ॥ मुविहित साधुने हितना करनार एवा स्वाध्यायने विषे हमेशां उद्यमवंत था अने नित्य पांच महावतनी रक्षा आत्म समक्ष कर ॥ ५५ ॥
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