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[ द्रव्यानुभव-रत्नाकर ।
२२ ] ठीक हैं। इसका कथन विशेष आवश्यक, अथवा स्याद्वाद रत्नाकर वा नयचक्र आदि ग्रन्थों में है सो वहाँसे देखो, और इसी अपेक्षासे श्री देवचन्द्रजीने आगमसारमें पाँच समवायका वर्णन किया है। उस जगह नियतमें निश्चयको छोड़कर समकितको अङ्गीकार किया है सो ही दिखाते हैं, कि प्रथमकाल कहकर चौथा आरा लिया, फिर अभव्यको टालनेके वास्ते स्वभाव लिया, सब भव्योंको मोक्ष न जानेके वास्ते नियत करके समकित नहीं पाया। फिर श्रीकृष्ण और श्रोणिकके वास्ते मोक्ष न जानेमें पुरुषार्थ अङ्गीकार किया, फिर सालभद्रको पुरुषार्थसे मोक्ष न हुआ तब पूर्वकृत अङ्गीकार किया। इस रीतिसे उस आगमसारमें पाँच समवायका वर्णन है। इसलिये जो आत्मार्थी भव्य प्राणी हो तो वह बाद विवादको छोड़कर अपनी आत्माका कल्याण करे, और सर्वज्ञके वचनको अङ्गीकार करे, संसारसे डरे, झगड़े में न पड़े, मुक्ति पदको जायबरे, गुरूके वचन हृदयमें धरे, कुगुरुओंका संग परिहरे।
अब गर्भाधानके ऊपर पांच समवायोंको उतारकर दिखाते है कि, काल कहता जो स्त्री ऋतु धर्मपर आकर पांच सात दिन तक गर्भ रहनेका शास्त्रोंमें कहा है। अथवा जिस काल जिस वक्तमें गर्भ रहे सो काल लेना। दूसरा समवाय कहते हैं कि जिस स्त्रोके गर्भ धारणका स्वभाव होगा वही गर्भ धारण करेगी। क्योंकि ऋतु कालतो वन्ध्याके भी होता है। परन्तु उसमें गर्भ धारण करनेका स्वभाव नहीं हैं। इसलिये वह गर्भवतो कदापि न होगी। ३ नियत कहता निमित्त स्त्रीको पुरुषका होना चाहिये । जबतक पुरुषका निमित्त न होगा तब तक भी गर्भाधान न रहेगा। चौथा पूर्वकृत जिसने पूर्व संतान होनेका कर्म उपार्जन किया होगा उसीके संतान अर्थात् गर्भ रहेगा। क्योंकि पुरुषका निमित्ततो वन्ध्याको भी मिलता है परन्तु गर्भ धारण नहीं होता। इसलिये पूर्वकृत चौथा समवाय हुआ। पांचवा पुरुषाकार अर्थात् उद्यम जो २ स्त्रियोंके गर्भ रहेके बाद यत्न कहे हैं सो २ यतन करना उमीका नाम पुरुषाकार हैं।
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