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द्रव्यानुभव - रत्नाकर । ]
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स्वय क्षेत्र अर्थात् लोक अलोक मिलकर अनन्त प्रदेश हैं सो अनादि अनन्त हैं । आकाशका स्वय काल अर्थात् अगुरु लघु पर्याय करके तो अनादि अनन्त हैं, परन्तु उत्पाद वयकी अपेक्षासे सादी सान्त है। और आकाशका स्वयभाव अर्थात् अवगाहना दान मुख्य गुण अनादि अनन्त है, खन्दलोक प्रमाण अनादि अनन्त है, परन्तु देश, प्रदेशोंमें कोई अपेक्षासे सादी सान्त है, सो आकाशके दो भेद हैं। एकतो लोक आकाश, दूसरा अलोक आकाश, सो लोक आकाशका तो खन्द सादी सान्त है, और अलोक आकाशका खन्द लोक आकाशकी अपेक्षासे सादी अनन्त है, इसरीतिसे आकाशमें चौभङ्गी कही ।
अब काल द्रव्यमें चौभङ्गी कहते हैं । कालका स्वय द्रव्य अर्थात् गुण पर्यायका समूह रूपतो अनादि अनन्त है, और कालका स्वय क्षेत्र समय रूप सादी सान्त है, और कालका स्वय काल अर्थात् अगुरु लघु पर्याय करके तो अनादि अनन्त है, परन्तु उत्पाद वयकी अपेक्षाले सादी सान्त है; कालका स्वय भाव वर्त्ताना लक्षण मुख्य गुण सो तो अनादि अनन्त है, परन्तु अतीत (भूत) काल अनादि सान्त है, वर्तमान समय सादी सान्त है, अनागत ( भविष्यत ) काल सादी - अनन्त है । इसरीतिले कालमें चौभङ्गी कही ।
अब पुद्गलमें चौभङ्गी कहते हैं । पुद्गल द्रव्यका स्वय द्रव्य अर्थात् गुण पर्यायका 'समूह रूप, सो तो अनादि अनन्त है, पुद्गलका स्वय क्षेत्र परमाणु रूपसो सादी सान्त है, पुद्गलका स्वयं काल अगुरु लघु पर्याय सो तो अनादि अनन्त है; परन्तु उत्पाद वयकी अपेक्षासे सादी सान्त है, पुद्गलका स्वय भाव मुख्य गुण मिलन, विखरन, पूरन, गलन आदि स्वय भावतो अनादि अनन्त है, परन्तु बर्णादि पर्याय सादी सान्त है । इसरीतिले छओं द्रव्योंमें द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव करके भी कही।
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अब छः द्रव्योंमें जो परस्पर सम्बन्ध है, उसकी चौभगी कहते हैं। आकाश द्रव्य है उसके दो भेद हैं, तिसमें अलोक भाकाशले तो कोई द्रव्यका सम्बन्ध है नहीं; क्योंकि उस अलोक भाकाशमें कोई
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