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अनुपमतीर्थमिदं स्मर चेतन - मन्तः स्थितमभिरामं रे । चिरं जीव विशदपरिणामं,
लभसे सुखमविरामं रे । अनुभव० ॥ २२८ ॥ अर्थ :- तेरे अन्दर स्थित आत्मा ही सुन्दर व अनुपम तीर्थ है, उसे तू याद कर और चिरकाल पर्यन्त निर्मल परिणामों को धारणकर जिससे तुझे अक्षय सुख की प्राप्ति होगी
॥२२८॥
परब्रह्मपरिणाम-निदानं, स्फुटकेवलविज्ञानम् रे । विरचय विनयविवेचितज्ञानं,
शान्त सुधारसपानं रे । अनुभव० ॥ २२९ ॥ अर्थ :- परब्रह्म-परमात्मस्वरूप की प्राप्ति के निदान रूप तथा निर्मल केवलज्ञान प्रदान करने वाले विनय ( पू. उपा. श्री विनय विजयजी म. ) द्वारा विवेचित 'शान्त सुधारस' का हे भद्र ! तू पान कर ॥२२९॥
शांत-सुधारस
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