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साध्व्यः श्राद्ध्यश्च धन्याः श्रुतविशदधिय शीलमुद्भावयन्त्यस्तान् सर्वान् मुक्तगर्वाः
प्रतिदिनमसकृद् भाग्यभाजः स्तुवन्ति ॥ १९०॥ स्रग्धरावृतम् अर्थ :- जो सुश्रावक दान, शील और तप का आसेवन करते हैं और सुन्दर भावना का भावन करते हैं, इस प्रकार ज्ञान से पुष्ट श्रद्धा से चारों प्रकार के धर्म की आराधना करते हैं, तथा जो साध्वीगण और श्राविकाएँ ज्ञान से निर्मल बुद्धि द्वारा शील / सदाचार का पालन करती हैं, वे भी धन्यवाद की पात्र हैं । इन सबकी हमेशा अनेक बार जो गर्वरहित भाग्यवन्त स्तुति करते हैं, वे भी धन्यवाद के पात्र हैं ॥ १९०॥ मिथ्यादृशामप्युपकारसारं, संतोष - सत्यादि-गुणप्रसारम् । वदान्यता वैनयिकप्रकारं, मार्गानुसारीत्यनुमोदयामः ॥१९१॥ उपजातिवृतम् अर्थ :- मिथ्यादृष्टि के भी परोपकारप्रधान संतोष - सत्य आदि गुणसमूह तथा उदारता - विनयवृत्ति आदि मार्गानुसारी गुणों की हम अनुमोदना करते हैं ॥१९१॥
जिह्वे ! प्रह्वीभव त्वं सुकृतिसुचरितोच्चारणे सुप्रसन्ना, भूयास्तामन्यकीर्तिश्रुतिरसिकतया मेऽद्य कर्णौ सुकर्णौ । वीक्ष्याऽन्यप्रौढलक्ष्मीं द्रुतमुपचिनुतां लोचने रोचनत्वं, संसारेऽस्मिन्नसारे फलमिति भवतां जन्मनो - मुख्यमेव ॥ ६ ॥
स्स्रग्धरावृत्तम्
शांत-सुधारस
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