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अर्थ :- आशंसा रहित तप ताप को शान्त करता है, पाप को दूर करता है, मनरूपी हंस को प्रसन्न करता है और दुष्कर मोह को हर लेता है ॥१२२॥ संयम-कमला-कार्मणमुज्ज्वल-शिव-सुख-सत्यंकारम् । चिन्तित-चिन्तामणिमाराधय,
तप इह वारंवारम् ॥ विभा० ॥१२३ ॥ अर्थ :- तप संयम रूपी लक्ष्मी का वशीकरण है। निर्मल मोक्ष का वचन देता है । इच्छाओं को पूर्ण करने में चिन्तामणि है, ऐसे तप का बारम्बार आराधन करो ॥१२३॥ कर्मगदौषधमिदमिदमस्य च, जिनपतिमतमनुपानम् । विनय समाचर सौख्यनिधानं,
शान्त-सुधारस-पानम् ॥ विभा० ॥ १२४ ॥ अर्थ :- यह तप कर्मरूप व्याधि की औषध है और जिनेश्वर का मत उसका अनुपान है । हे विनय ! सुख के निधान स्वरूप शान्त सुधारस का पान करो ॥१२४।।
शांत-सुधारस
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