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४. एकत्व भावना एक एव भगवानयमात्मा, ज्ञानदर्शनतरङ्गसरङ्गः । सर्वमन्यदुपकल्पितमेतद्, व्याकुलीकरणमेव ममत्वम् ॥४५॥
स्वागता अर्थ :- यह एक आत्मा ही भगवान है, जो ज्ञान-दर्शन की तरंगों में विलास करने वाली है । इसके सिवाय अन्य समस्त कल्पना मात्र है। ममत्व आकुल-व्याकुल करने वाला है ॥४५॥ अबुधैः परभावलालसा-लसदज्ञानदशावशात्मभिः । परवस्तुषु हा स्वकीयता, विषयावेशवशाद् विकल्प्यते ॥४६॥
प्रबोधता अर्थ :- पर-भाव को पाने की लालसा में पड़ी हुई अज्ञान-दशा से पराधीन अपण्डित आत्मा, इन्द्रिय-विषयों के आवेग के कारण पर-पदार्थों में भी आत्मबुद्धि (स्वकीयताअपनापन) की कल्पना कर लेती है ॥४६॥ कृतिनां दयितेति चिन्तनं, परदारेषु यथा विपत्तये । विविधार्तिभयावहं तथा, परभावेषु ममत्वभावनम् ॥ ४७ ॥ शांत-सुधारस
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