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हैं, तो परलोक में उन्हें अवश्य ही नरकादि गतियाँ मिलेंगी। जहाँ उन्हें बध, बंधन, मारपीट, डाँट, फटकार आदि यातनाएँ मिलेंगी। इसीलिए ऐसों के लिए परलोक अच्छा नहीं। परंतु जो सुख-साधन संपन्न पुरुष शरीर में उत्पन्न आधि, व्याधि को सहन करते हैं, धर्माचरण में प्रमाद नहीं करते; जिसके कारण अंतिम समय में उनका ध्यान विशुद्ध रहता है, उनका मरना और परलोक जाना कल्याणकारी है, क्योंकि उन्हें वहाँ सद्गति और सुख मिलेंगे ॥४४२॥ तवनियमसुट्ठियाणं, कल्लाणं जीवियं पि मरणं पि । जीवंति जइ गुणा, अज्जिणंति सुग्गइं उविंति मया ॥४४३॥
शब्दार्थ : बारह प्रकार के तप, जप, नियम, व्रत और संयम धर्म की जो भलीभांति आराधना करते हैं, उनका जीना
और मरना दोनों कल्याणकारी हैं। क्योंकि अगर धर्मात्मा पुरुष (साधु-श्रावक आदि) जीते रहेंगे तो भी वे धर्म वृद्धि करेंगे
और अधिक गुणों का उपार्जन करेंगे और मरने के बाद भी परलोक में स्वर्ग-मोक्षादि सद्गति अवश्य प्राप्त करेंगे ॥४४३।। अहियं मरणं अहियं च, जीवियं पावकम्मकारीणं । तमसम्मि पडंति मया, वेरं वर्ल्डति जीवंता ॥४४४॥
शब्दार्थ : रात-दिन पापकर्म करते रहने वाले व्यक्ति का मरना भी अहितकर और जीना भी अहितकर । क्योंकि मरने
उपदेशमाला
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