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________________ योगाष्टकम्-27 मोक्षेण योजनाद्योगः, सर्वोऽप्याचार इष्यते । विशिष्य स्थानवर्णार्थालम्बनैकाग्रयगोचरः ॥ १ ॥ भावार्थ : मोक्ष के साथ आत्मा को जोड़ने से सभी प्रकार का आचार योग कहलाता है । विशेष रूप से स्थान (आसन आदि), वर्ण, अर्थज्ञान, आलम्बन और एकाग्रता ( योग के प्रकार ) हैं ॥१॥ कर्मयोगद्वयं तत्र, ज्ञानयोगत्रयं विदुः । विरतेष्वेव नियमाद्, बीजमात्रं परेष्वपि ॥ २ ॥ भावार्थ : उसमें दो कर्मयोग (क्रिया रूप) और तीन ज्ञान योग (ज्ञान स्वरूप) हैं । ये योग नियमतः विरतिवान् में अवश्श्यक होते हैं, अन्यों में भी बीजरूप होते हैं ||२|| I कृपानिर्वेदसंवेग, प्रशमोत्पत्तिकारिणः । भेदाः प्रत्येकमत्रेच्छा, प्रवृत्तिस्थिरसिद्धयः ॥ ३ ॥ भावार्थ : प्रत्येक योग की इच्छा, प्रवृत्ति स्थिरता और सिद्धि इस प्रकार चार - चार भेद होते हैं । ये कृपा, निर्वेद, संवेग और प्रशम को उत्पन्न करने वाले होते हैं ||३|| इच्छा तद्वत्कथाप्रीतिः, प्रवृत्तिः पालनं परम् । स्थैर्यं बाधकभीहानिः, सिद्धिरन्यार्थसाधनम् ॥ ४ ॥ ६१
SR No.034146
Book TitleGyansara Ashtak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages80
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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