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भूमिका में गांधीजी मोहभाव से ग्रस्त थे।
र इनके प्रश्न थे: (१) बीमारी के कारण परिचर्या की आवश्यकता न होते हुए भी अथवा परवशता के अन्य अवसरों को छोड़कर भी क्या कोई बिना जरूरत, नग्न अवस्था में मनुष्य अथवा स्त्री के सामने आ सकता है, जब कि वह ऐसे समाज का व्यक्ति नहीं जिस में नग्नता एक प्रथा हो? (२) जिनमें पति-पत्नी का सम्बन्ध न हो अथवा जो मुक्त रूप में ऐसा व्यवहार न रखते हों, ऐसे स्त्री-पुरुष क्या एक शय्या का साथ उपयोग कर सकते हैं ?
श्री प्यारेलालजी इस सारे पत्र-व्यवहार का जिक्र नहीं करते और न विरोध में पाए हुए पत्रों का सार ही देते हैं। हरिजन पत्र के सम्पादन कार्य से दो साथियों के हटने का वे उल्लेख करते हैं, पर वे साथी कौन थे, इस बात से भी वे पाठकों को अन्धेरे में रखते हैं। - श्री प्यारेलालजी इस बात का उल्लेख अवश्य करते हैं कि महात्मा गांधी ने इस विषय में अनेक पत्र लिखे और राय जाननी चाही पर नाम उन्हीं के प्रकाशित किए हैं, जिन्हें कोई आपत्ति न थी अथवा जिनको बाद में कोई आपत्ति नहीं रही। जिनकी अन्त तक आपत्ति रही उनके नामों को तो उन्होंने सर्वत्र ही बाद दिया है। ____ फरवरी के अन्तिम सप्ताह में जब श्री किशोरलाल मशरूवाला का एक पत्र आया, तब गांधीजी ने श्री बोस को अपने पास बुलाया और उनमें तथा उनके निकट के साथियों में किस तरह मतभेद हो गया है, यह बतलाया। गांधीजी ने साथियों द्वारा उठाई गई आपत्तियों के विषय में श्री बोस के विचार जानने चाहे । मनु बहन ने श्री मशरूवाला का पत्र अनुवाद कर बताया और फिर प्रयोग का पूरा विवरण बताया। श्री बोस को जो जानकारी हुई, उसके अनुसार महात्मा गांधी अपनी शय्या पर बहिनों को सुलाते। प्रोढ़ने का कपड़ा एक ही होता। और फिर गांधीजी इस बात को जानना चाहते कि उनमें या उनके साथी में क्या अल्प-मात्र भी विकार उत्पन्न हुआ?
इस तरह अपनी परीक्षा के लिए स्त्रियों का सहारा लेना श्री बोस को नागवार मालम दिया। उनके मत से गांधीजी जो कईयों द्वारा, निजी सम्पत्ति माने जाने लगे थे, उसका कारण यही था। उनकी दृष्टि से कईयों का व्यवहार स्वस्थ मानसिक सम्बन्ध का परिचय नहीं देता था। इस प्रयोग का मूल्य खुद गांधीजी के जीवन में कितना ही क्यों न हो, उसका असर उन दूसरों के व्यक्तित्व के लिए घातक था, जो कि नैतिक स्तर में उतने हस्तिवाले नहीं थे और जिनके लिए इस प्रयोग में शरीक होना कोई आध्यात्मिक आवश्यकता नहीं थी। मनु की बात दूसरी थी जो रिश्ते में पोती थी। दूसरा या जाति म पाता था . . .
. _कई पालोचकों ने कहा-"हम यह मानने के लिए तैयार हैं कि आप इस साधना से प्राध्यात्मिक प्रगति कर सकते हैं, पर यह तो सम्मुख पक्ष के बलिदान पर होगा, जिसमें आप की तरह का संयम नहीं है ।" , ___ महात्मा गांधी ने कहा-"नहीं ऐसा नहीं हो सकता। यह तो परस्पर टकरानेवाली बात है। दूसरे के नुकसान पर अपनी प्राध्यात्मिक उन्नति नहीं हो सकती। साथ ही उचित खतरा उठाना ही होगा, अन्यथा मनुष्य-जाति प्रगति नहीं कर सकती।" उन्होंने एक दृष्टान्त दिया"जब एक कुम्हार मिट्टी का बर्तन बनाने लगता है, तब वह यह नहीं जानता कि मिट्टी में देने पर उनमें तेरें पड़ जायंगी अथवा अच्छी तरह पक कर बाहर निकलेंगे। यह अनिवार्य है कि उनमें से कई टूट जायं, किन्हीं में तेरे चल उठे और थोड़े ही पक कर सख्त हों, अच्छे बर्तन के रूप में बाहर पायें। मैं तो एक कुम्हार की तरह हूं। मैं आशा और श्रद्धापूर्वक कार्य करता हूँ। अमुक बर्तन टूटेगा या उसमें दरार होगी
-यह एक कुदरत और भाग्य की ही बात होगी। कुम्हार को चिन्ता नहीं करनी चाहिए। अगर कुम्हार ने इतनी चौकसी ले ली हो कि मिट्टी अच्छी किस्म की है और उसमें मिलावट या कूड़ा-कर्कट नहीं है और उसे ठीक आकार दिया गया है, तो इसके बाद की उसे चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं।".....मैंने जानबूझ कर अपने जीवन में कोई गलत कार्य नहीं किया है। यदि कभी अनजाने में कोई मुझसे गलत १-My days with Gandhi p. I60 : The main charge seemed to have been that Gandhiji was
obviously suffering from a sense of self-delusion in regard to his relation with the upposite
sex.
२-वही पृ०१८६ ३-वही पृ० १५६-६० ४-वही पृ०.१७४ ५-वही पृ० १७४-५
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