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भूमिका
यह तो मेरे यज्ञ का एक अविभाज्य अङ्ग है। मुझे सब कोई पाशीर्वाद दें। मैं जानता है कि मेरे मित्रों में भी मेरे कार्य की पालोचना है, परन्तु अत्यन्त अभिन्न मित्रों के लिए भी कर्तव्य को नहीं छोड़ा जा सकता।"
ता०२-२-४७ के प्रार्थना-प्रवचन में उन्होंने कहा-"मैंने जानबूझ कर खानगी जीवन की बात कही हैं, क्योंकि मैं यह कभी नहीं मानता कि मनुष्य का खानगी जीवन, उसके सार्वजनिक कार्यों पर कोई असर नहीं डालता। मैं यह नहीं मानता कि अपने जीवन में अनंतिक रहते हुए भी में जनता का सच्चा सेवक रह सyगा। अपने खानगी चरित्र का असर सार्वजनिक कार्यों पर पड़े बिना नहीं रह सकता। खानगी और सार्वजनिक जीवन में दूध के कारण बहुत बुराई हुई है । मेरे जीवन में अहिंसा की जांच का यह सर्वोपरि अवसर है । ऐसे अवसर पर में ईश्वर और मनुष्य के सम्मुख अपने प्रान्तरिक और सार्वजनिक दोनों कार्यों के योगफल के माधार पर जांचा जाना चाहता हूं। मैंने वर्षों पूर्व कहा था कि अहिंसा का जीवन, फिर चाहे वह व्यक्ति का हो, चाहे समूह का हो, चाहे एक राष्ट्र का, पात्म-परीक्षा और प्रात्मशुद्धि का. होता है।" .. ता० ३-२-'४७ के प्रवचन में महात्माजी ने कहा : "मैंने अपने खानगी जीवन के बारे में जो बातें कही हैं, वह प्रधानुकरण के लिए नहीं है। मैंने यह दावा नहीं किया कि मुझ में कोई असाधारण शक्ति है। मैं जो पर रहा हूं वह सबके, करने योग्य है, यदि वे उन शर्तों का पालन करें जिन का मैं करता हूँ। ऐसा नहीं करते हुए जो मेरे अनुकरण का बहाना करेंगे, वे पछाड़ खाये बिना नहीं रह सकते। मैं जो कर रहा हूं, वह अवश्य खतरे से भरा हुमा है। पर यदि शतों का कठोरता से के साथ पालन किया जाय तो यह खतरा नहीं रहता।"
उपर्युक्त उदगारों से स्पष्ट है कि महात्मा गांधी इस प्रयोग को, अपने यज्ञ का अविभाज्य अंश मानते. रहे। वे इसे इतना पवित्र मानते रहे कि उन्होंने जनता को इसकी सफलता के लिए आशीर्वाद देने को आमंत्रित किया।
इस प्रयोग का विवरण दो पुस्तकों में प्राप्त है : (१) श्री. प्यारेलालजी लिखित 'महात्मा गांधी–दी लास्ट फेज' और (२) श्री निर्मल बोस लिखित-माई डेज विथ गांधी'। महात्मा गांधी ने जिस प्रयोग की खुल्ले में चर्चा की है, उसी प्रयोग के बारे में. उपर्युक्त दोनों विवरणों में अत्यन्त रहस्यपूर्ण ढंग से और गोपनीयता के साथ चर्चा की गई है। सम्मान और नम्रता के साथ कहना होगा कि दोनों विवरण पूरे तथ्यों को उपस्थित नहीं करते और ऐतिहासिक दृष्टि से दोषपूर्ण हैं। ... भार श्री प्यारेलालजी ने महात्मा गांधी की पौत्री श्री मनु तक परिमित रख कर ही इस प्रयोग की चर्चा की है। श्री बोस. के अनुसार यह प्रयोग अन्य बहनों को साथ लेकर भी किया गया था और प्रथम बार ही नहीं था । और उनके अनुसार महात्मा गाँधी ने ऐसा स्वीकार भी किया था। महात्मा गांधी का यह प्रयोग सीमित था या व्यापक, इसका स्वयं उनकी लेखनी से कोई विवरण न मिलने पर भी यह तो निश्चत ही है कि इस प्रयोग को वे ऐसा समझते थे कि जिसमें पौत्री मनु और अन्य बहन का अन्तर नहीं. किया जा सकता। ऐसी परिस्थति में इस प्रयोग को व्यापक प्रयोग समझ कर ही उसकी चर्चा की जाती तो सत्य के प्रति, न्याय होता।
१-अमिशापाड़ा का प्रार्थना-प्रवचन । देखिए-My days with: Gandhi p. 155; Mahatma Gandhi-The Last
Phase Vol 1, p. 580 2-Mahatma Gandhi –The Last Phase Voli 1, p. 584 ३–दशघरिया का प्रवचन । देखिए---My days with Gandhi p; 1551; Mahatma Gandhi-The Last Phase
Vol. I, p. 581 8—My days with Gandhi pp. 134, 154, 174, 178
-वही, पृ० १३४, १७८ . ६--(क) वही पृ० १७७ :
The distinction between Manu and others is meaningless for our discussion. That she is my grand-daughter may exempt me from criticism. But I do not want that advantage..... (ख) देखिए पृ० ८३
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