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कथा १८:
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द्रौपदी
[ इसका संबन्ध ढाल ३ गा० १० ( पृ० २० ) के साथ है ]
share sa pet एक दिन पाण्डुराज पाँच पाण्डव, कुन्ती देवी, द्रौपदी देवी, तथा अंतःपुर के अन्य परिवार से संपरिवृत हो सिंहासन पर बैठे हुए थे। उस समय बच्छु नारद, जो देखने में तो अति भद्र और विनीत लगते थे, पर अंतरतः कलुषहृदयी थे, विद्या के सहारे आकाश में उड़ते हुए, आकाश का उल्लंघन करते हुए, सहस्रों ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट, मडंब, द्रोणमुख, पत्तन और सम्बाधन द्वारा शोभित और व्याप्त मेदिनी तल - वसुधा को देखते हुए हस्तिनापुर पहुंचे और अत्यधिक वेग से पाण्डुराज के भवन में उतरे।
नारद को आते देखकर पाण्डुराज ने पाँच पाण्डब और कुन्ती देवी सहित आसन से उठ सात-आठ कदम सम्मुख जा, तीन बार आदक्षिण - प्रदक्षिणा कर वन्दन - नमस्कार किया और महापुरुष के योग्य आसन से उन्हें उपमंत्रित किया। नारद जल के छींटे दे, दर्भ बिछा, आसन डाल, उस पर बैठे और पाण्डु राजा से उसके राज्य यावत् अन्तःपुर सम्बन्धी कुशल- समाचार पूछने लगे।
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पाण्डुराज कुन्ती देवी और पांच पाण्डवों के साथ नारद का आदर-सत्कार कर उनकी पर्युपासना करने लगे। केवल द्रौपदी ने नारद को असंयत, अविरत, अप्रतिहतप्रत्याख्यातपापकर्मा जान, न तो उनका आदर किया, न उनका सम्मान किया, न खड़ी हुई और न उनकी पर्युपासना की।
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नारद सोचने लगे - "द्रौपदी अपने रूप लावण्य के कारण और पाँच पाण्डवों को अपने पति रूप में पाकर गर्विष्ठा हो गई है और इसी कारण मेरा आदर नहीं करती। अतः इसका अप्रिय करना ही मेरी समझ से श्रेयस्कर होगा ।" ऐसा विचार, पाण्डुराज से पूछकर आकाशगामिनी विद्या का स्मरण कर उत्कृष्ट विद्याधर की गति से आकाश मार्ग में चलने लगे और लवण समुद्र के बीचोंबीच से पूर्व दिशा की ओर मुखकर आगे बढ़ने लगे ।
उस समय घातकी खण्डद्वीप की पूर्व दिशा के मध्य दक्षिणार्द्ध भरतक्षेत्र में अमरका नाम की राजधानी थी। वहाँ पद्मनाभ नाम का एक राजा था। एक दिन वह अपनी सात सौ देवियों से संपरिवृत हो अंतपुर में सिंहासन पर बैठा था । उसी समय नारद बढ़ते उड़ते सीधे उसके राजभवन में आकर उतरे। पद्मनाभ राजा ने उनका आदर-सत्कार किया, अर्घ्य
से उनकी पूजा की और उन्हें आसन से उपमंत्रित किया। नारद ने कुशल समाचार पढे ।
राजा पद्मनाभ अपनी रानियों के अनेक ग्राम यावत् घरों में प्रवेश करते हैं। देखा है ?” नारद पद्मनाभ की बात सुन जम्बुद्वीप के भारतवर्ष में हस्तिनापुर नामक नगर है। पुत्रवधू और पाँच पाण्डवों की पत्नी द्रौपदी देवी है। पग के अँगूठे के सौंवें हिस्से की बराबरी करने योग्य भी नहीं है। इसके बाद पद्मनाभ राजा से पूछ, नारद वहाँ से चल पड़े।
नारद से प्रशंसा सुन पद्मनाभ राजा द्रौपदी के रूप, यौवन, लावण्य में मुति गृद्ध, लुब्ध हो, उसकी प्राप्ति
१- ज्ञातासूत्र के १६ वें अध्याय के आधार पर।
परिवार के प्रति विस्मयोन्मुख हो नारद से पूछने लगा "हे देवानुप्रिय ! आप क्या आपने जैसा मेरी रानियों का परिवार है वैसा अन्यत्र भी पहिले कहीं किंचित् हँसकर बोले – “पद्मनाभ ! तू कूप मण्डूक के सदृश है। देवानुप्रिय ! वहाँ द्रुपद राजा की पुत्री, चुलना देवी की आत्मजा, पाण्डुराज 'की वह रूप, लावण्य में उत्कृष्ट है। तेरा रानी समूह उसके छेदे हुए
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