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________________ परिशिष्ट-क : कथा और दृष्टान्त इधर चण्डप्रद्योतन ने दूत से पुनः कहलवा भेजा कि महारानी अपनी की हुई प्रतिज्ञा के अनुसार उसके महल में चली आवे। जब दूत कोशाम्बी आया और उसने युद्ध की पूर्ण तयारी देखी तो वह वापस चला आया और राजा को खबर दी कि वहाँ तो युद्ध की तैयारियां हो रही हैं। किले के फाटक बन्द करवा दिये गये हैं। महारानी प्रस्ताव स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं। . जब चण्डप्रद्योतन ते यह सुना तो वह वहत क्रट हुआ और अपनी विशाल सेना सजाकर कोशाम्बी को पूर्ण रूप से विध्वस्त करने की प्रतिज्ञा कर वहां पहुंचा और नगरी को सेनाओं से घेर लिया। इधर श्रमण भगवान् महावीर ग्रामानुग्राम विचरण करते हए कोशाम्बी नगरी के बाहर उद्यान में ठहरे। मृगावती को जब यह ज्ञात हुआ तब उसकी प्रसन्नता का पारावार न रहा। उसने अपनी सेना को युद्ध बन्द कर देने का आदेश दिया। कोशाम्बी के दरवाजे खुलवा दिये और सबको निर्भीक होकर भगवान के दर्शन करने का आदेश दिया। महारानी मृगावती अपने समस्त नगरवासियों के साथ भगवान महावीर के समवशरण में पहुँची। राजा चण्डप्रद्योतन ने मी जब भगवान् के पदार्पण की खबर सुनी तो उन्होंने भी युद्ध बन्द करने का आदेश दिया और वे भी भगवान के समवशरण में पहुंचे। र भगवान महावीर की वाणी सुनकर चण्डप्रद्योतन का विषय मद उतरा और वह अपने किये हुए कार्यो का पश्चाताप करने लगा। इधर महारानी मृगावती ने भगवान् से निवेदन किया- भगवन् ! मैं आप से प्रत्रज्या ग्रहण करना चाहती है। चण्डप्रद्योतन महाराज मुझे आज्ञा प्रदान करें।" मृगावती के इस वचन से चण्डप्रद्योतन बड़ा प्रभावित हुआ। वह बोला-"देवी! तुम धन्य हो। तुम्हारा जीवन धन्य है। मैं आज से प्रतिज्ञा करता हूँ कि उदायन मेरा छोटा भाई रहेगा। मैं उसके राज्य-संरक्षण की जिम्मेवारी लेता हूँ।" महारानी मृगावती ने उदायन का राज्याभिषेक करवाकर आर्या चन्दनबाला के पास दीक्षा धारण की। महाराजा चण्डप्रद्योतन की आठ रानियों ने भी पति की आज्ञा ले भगवान् के पास दीक्षा ग्रहण की। चण्डप्रद्योतन ने महासती मृगावती को नमस्कार किया और अपराध की क्षमा याचना कर अपनी राजधानी को लौट गया। Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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