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परिशिष्ट-क : कथा और दृष्टान्त
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इधर कोशा उन्हें विचलित करना चाहती थी और उधर मनिवर स्थलिभद उसे प्रतिबोधित करना चाहते थे। जब-जब वह उनके पास जाती, वे उसे विविध उपदेश देते :
___ "विषय-सुख चाहे कितने ही दीर्घ समय तक के लिए भोगने को मिल जाय, आखिर एक न एक दिन उनका अन्त अवश्य होता है। ऐसे नाशवान विषयों को मनुष्य खुद क्यों नहीं छोडता विषय जब अपने आप छूटते हैं, तो मनको अत्यन्त परिताप होता है, परन्तु यदि उनको स्वयं ही प्रसन्नता पूर्वक त्याग दिया जाता है, तो मोक्ष-सुख की प्राप्ति
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होती है।
___.."धर्म-कार्य से बढ़कर कोई दूसरा श्रेष्ठ कार्य नहीं है। प्राणी-हिंसा से बढकर कोई दूसरा जघन्य कार्य नहीं प्रेम, राग, मोह से बढ़कर कोई बन्धन नहीं और बोधि (सम्यक्त्व )-लाभ से विशेष कोई लाभ नहीं है।"
मुनि स्थूलिभद्र के उपदेश से कोशा को अन्तर प्रकाश मिला। उनकी अद्भुत जितेन्द्रियता को देखकर उसका हृदय पवित्र भावनाओं से भर गया। अपने भोगासक्त जीवन के प्रति उसे बड़ी घृणा हुई। वह महान् अनुताप करने लगी। उसने मुनि से विनयपूर्वक क्षमा मांगी तथा सम्यक्त्व और बारह व्रत अंगीकार कर वह श्राविका हुई। उसने नियम किया-"राजा के हुक्म से आये हुए पुरुप के सिवाय मैं अन्य किसी पुरुष से शरीर-सम्बन्ध नहीं करूँगी।
इस प्रकार व्रत और प्रत्याख्यान कर कोशा गणिका उत्तम श्राविका जीवन बिताने लगी।
चातुर्मास समाप्त होनेपर मुनिवर स्थूलिभद्र ने वहां से विहार किया। समय पाकर राजा ने कोशा के पास एक रथिक को भेजा। वह बाण-संधान विद्या में बड़ा निपुण था। अपनी कुशलता दिखलाने के लिए उसने झरोखे में बैठेबैठे ही बाण चलाने शुरू किये और उनका एक ऐसा तांता लगा दिया कि उनके सहारे से उसने दूर के आम्र वृक्ष की फल सहित डालियों को तोड़-तोड़ कर उसे कोशा के घर तक खींच लिया।
इधर कोशा ने भी अपनी कला दिखलाने के लिए आंगन में सरसों का ढेर करवाया, उस पर एक सुई टिकाई और एक पुष्प रखकर नयनाभिराम नृत्य करना शुरू किया। नृत्य को देखकर रथिक चकित हो गया। उसने प्रशंसा करते हुए कोशा से कहा-"तुमने बड़ा अनोखा काम किया है"।
___ यह सुनकर कोशा बोली-"न तो बाण-विद्या से दूर बैठे आम की लूंब तोड़ लाना ही कोई अनोखा काम है और न सरसों के ढेर पर सुई रखकर और उस पर फूल रखकर नाचना ही। वास्तव में अनोखा काम तो वह है जो महा श्रमण स्थूलिभद्र मुनि ने किया। ____ "वे प्रमदा-रूपी बन में निशंक बिहार करते रहे, फिर भी मोह प्राप्त होकर भटके नहीं।
"अग्नि में प्रवेश करने पर भी जिन्हें आंच नहीं लगी; खड़ग की धार पर चलने पर भी जो छिद नहीं गए, काले नाग के बिल के पास बास करने पर भी जो काटे नहीं गए और काल के घर में वास करने पर भी जिन्हें दाग नहीं लगा, ऐसे असिधारा व्रत को निभाने वाले, नर-पुंगव स्थूलिभद्र तो एक ही हैं। धन्य है उन्हें ।”
“भोग के सभी अनुकूल साधन उन्हें प्राप्त थे। पूर्व परिचित वेश्या और वह भी अनुकूल चलनेवाली, षट्स युक्त भोजन, सुन्दर महल, युवावस्था, सुन्दर शरीर और वर्षा ऋतुइनक या
सीर और वर्षा ऋतु इनके योग होने पर भी जिन्होंने असीम मनोबल का परिचय देते हुए काम-राग को पूर्ण रूप से जीता और भोग रूपी कीचड़ में फंसी हुई मुझ जैसी गणिका को अपने उच्चादर्श और उपदेश के प्रभाव से प्रति बोधित किया। उन कुशल महान आत्मा स्थूलिभद्र मुनि को में नमस्कार करती हूँ।.....
__कामदेव । तू ने नंदीषेण, रथनेमि और आद्रकुमार मुनीश्वर की तरह ही स्थूलिभद्र मुनि को समझा होगा और सोचा होगा कि ये भी उनके ही साथी होंगे, परन्तु तू ने यह नहीं जाना कि ये मुनीश्वर तो रणांगन में तुम्हें परास्त कर नामनाथ, जम्बु मुनि और सदर्शन सेठ की श्रेणी में आसीन होंगे।
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