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१०-रूपी राजा नारी-वेद से आकर्षित हो चक्षु-कुशील हो गया। बाड़ को भंग कर वह लाखों भव में भटका।
बोधी बाड़ : ढाल ५ : गा० १०-१६ १०-नारी वेद नरपति थयो,
वले चल कूसीलीयो ते थाय। बाड़ भांग लाखां भवां रे,
रुलीयो रूपी राय ''सु० ना०॥ ११-सेठ घरे जामो लीयो रे,
नाम इलापुतर जाण । ते नटवी रूपे मोहीयो रे, ते वसीयो नटवां घरे आंण ॥सु० ना०॥
११-एलाचीपुत्र ने सेठ के घर जन्म लिया। वह एक नटवी के रूप में मोहित हो गया और नट के घर आकर रहने लगा।
१२-एक बार वह बांस पर खेल दिखाने के लिए चढ़ गया। वह हर्ष से फूला नहीं समाता था। एलाचीपुत्र राजा के धन की इच्छा करता था और राजा उसके प्राणघात की।
१३-मणिरथ ने मैनरहा के रूप को देखकर अपने भाई युगबाहु की हत्या कर दी। वह भी उसी कारण से मृत्यु को प्राप्त हुआ और दुर्गति रूपी अन्धकूप में जा गिरा।
१२ ते बांस उपर चढ़ नाचतो रे,
ते मन मांहें हरप न मात । ओ बांछे धन राय नों रे,
राय बांछे इणरी घात "॥सु० ना०॥ १३- मणरथ बंधव मारीयो रे, . मेणरेहा रो देखी रूप। -
मरण पांम्यो तिण जोग सरे,
वले जाय परयो अंध कूप "सु० ना०॥ १४–अरणक संजम आदरयो रे,..
दीधी संसार में पूठ। ते नारी रूपें मोहीयो रे, .
ते नारी लीयो तिण लूट "॥सु० ना०॥ १५-एक पत्री आंणों ले जावतां रे,
मारग मांहें मिलीयो चोर । तिणनें पत्री वांण वाया घणां रे,
चोर फरसी सून्हांख्या तोड ॥सु० ना०॥ १६-हिवें एक बांण बाकी रह्यो रे,
जब अस्त्री निज रूप दिखाय। । ते चोर तिणरें रूप बिलंबीयो रे, जब पत्री बांण सूं दीयो ढाय ॥सु० ना०॥
१४-अरणक ने संसार से मुख मोड़कर संयम धारण किया। किन्तु वह नारी के रूप को देखकर मोहित हो गया। स्त्री ने उसका चारित्र लूट लिया !
१५-एक क्षत्रिय गौना कर ससुराल से अपनी पत्नी को लेकर जा रहा था। मार्ग में उसे एक चोर मिल गया। क्षत्रिय ने अनेक वाण छोड़े किन्तु चोर ने फरसे से उन सब वाणों को काट दिया।
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१६-क्षत्रिय के पास केवल एक वाण बच गया । स्त्री को बचाव का एक उपाय सूझा। उसने चोर को अपना रूप दिखाया। चोर उसके सौन्दर्य को देखने में लग गया। क्षत्रिय ने तुरत वाण छोड़ उसे भूमि पर गिरा दिया।
SROSATTI
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