________________
३०
शील की नव बाड़
३-कामिनी जादूगरनी है। उसने सारे संसार को वश में कर लिया है। भाग्यवश ही कोई उससे बच पाया है। देव और मानव सभी उसके सामने हार चुके हैं।
४-नारी रूप में रम्भा के सदृश होती है। वह वचन की भी बड़ी मधुर होती है। नारी को नजर भरकर देखने से व्रत नष्ट हो जाता है। .
५-सुन्दर रूपवाली स्त्री को देखकर कामान्ध पुरुप उसमें आसक्त होता है। वह स्त्री-भोग में सुख मानता है ; किन्तु यह नहीं जानता कि स्त्री दुर्गति का बन्धन करनेवाली है।
३-कांमणगारी कामणी रे,
वस कीयो सर्व संसार। .. ___ आखी अणी कोयक रह्यो रे,
सुर नर गया सर्व हार * ॥सु० ना०॥ ४-रूपें रंभा सारिपी रे,
बले मीठाबोली हुर्वे नार । ते निजर भरे ने निरखता रे,
वरत ने होवें विगाड ॥सु० ना०॥ ५-रूप में रूडी देखने रे,
मांहें पडें काम अंध । - सुख मांणे जाणे नहीं रे,
ते पाडे दुरगत नों बंध ॥सु० ना०॥ ६-रूप घणों रलीयामणों रे, ___वले अपछरे रे उणीयार।।
ते देखे रीमो किसं रे,
आ मल मूतर रो भंडार ॥सु० ना०॥ उ ७-अशुच अपवित्र नों कोथलो रे.
कलह . काजल नों ठाम । बार श्रोत वहें सदा रे,
चरम दीवडी नाम ॥सु० ना०॥ ८-देह उदारीक कारमी रे, खिण में भंगुर थाय । । सपत धात रोगाकुली रे,
जतन करतां जाय ॥सु० ना०॥ &-अबला इंद्री निरखता रे,
बाधे विषे रस पेम। राजमती देखी करी रे, तुरत डिग्यों रहनेम "॥सु० ना०॥
६-भले ही कोई नारी रूप में बहुत मनोहर और अप्सरा के समान हो, किन्तु, उसे देखकर क्यों मुग्ध होते हो ? वह तो मल-मूत्र का . भाण्डार है।
७-नारी अशुचि और अपवित्रता की थैली है। वह कलह रूपी काजल की कोठरी है। उसकी देह से बाहर स्रोत बहते रहते हैं, जिससे उसका 'चर्म दीवड़ी' नाम पड़ा है।
८-यह देह औदारिक और नाशवान है । यह क्षणभंगुर है। सप्त धातु का यह शरीर रोगाकुल है, जो यन्न करते रहने पर भी नाश को प्राप्त हो जाता है।
ह-स्त्रियों की इन्द्रियों का निरीक्षण करने से विषय-रस के प्रति अनुराग बढ़ता है। राजीमति को देखकर रथनेमि तत्काल विचलित हो गया।
Scanned by CamScanner