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२.१ - नारी
रूप नहीं निरखणो, जिण कही चोथी बाड़ । ए सुध मांन जे पालसी, तिण सफल कीयो अवतार 2 11
चोथी बाड़ नारी रूप नहीं निरखणो
दुहा
जोवी
२ – चित्र लिखित जे पिण केवलग्यांनी • दसवीकालिक
इम
पूतली,
नांहि,
कों।.
a
मांहि ॥
नीं विकार ।
४
१- मनहर इंद्री नार तिण दीठांई बधें मिरग जाल ज्यूं पास रच्यो संसार " ||गुण रे ||
नर भणी रे,
जोईये,
M रूप न जोइयें नहीं धर राग ॥सु• ॥
ढाल ५
[ मोहन मूंदडी ले गयो ]
दीवलो
२- नारी रूप भोगी पुरष झंपे सुख रे कारण दा कोमल अंग ॥सु० ना० ॥
1
रे,
पतंग |
रे,
१ - जिन भगवान् ने चौथी बाड़ में यह कहा है कि नारी के रूप आदि का निरीक्षण नहीं करना चाहिए। जो शुद्ध समझ कर इस बाड़ का पालन करेगा, वह मनुष्य जन्म को सफल करेगा ।
२ - केवल ज्ञानी भगवान् ने 'दशवेकालिक-सूत्र, कहा है कि साधु को चित्राङ्कित पुतली हो उसका भी अवलोकन नहीं करना चाहिए ।
में
१ - स्त्रियों की इन्द्रियाँ मनोहर होती हैं । उनके निरीक्षण मात्र से ही मन में विकार की वृद्धि होती है। स्त्रियों के मनोहर अंगोपाङ्ग मृगजाल की तरह हैं। मनुष्यों के लिए संसार में यह पाश रचा हुआ है।
अतः हे सद्गुणी ! स्त्री के रूप को रागपूर्वक मत देख |
२- स्त्री का रूप दीपक के समान है और भोगी पुरुष पतंग के समान । वह सुख प्राप्ति के लिए उसमें गिरता है और अपने कोमल शरीर को जला डालता है ।
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