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तीजी बाड़ : ढाल ४ : गा०६-१४ १ ते देव थईने चक्रवत हुवों,
भोग मांहें गिधी थकों मूंओ लाल । सातमी नरक मांहें जाय पड़ीयो, पाप सं पूर्ण भरीयो लाल ॥ती०॥
६-मृत्यु के बाद वह मुनि देवता हुआ। वहाँ से च्यवकर चक्रवर्ती हुआ और भोगों में गृद्ध रहता हुआ पापों से परिपूर्ण हो काल प्राप्त कर सातवीं नरक में गया।
१०–नारी फरस वेद्यां सं ओगुण अनेक,
तिण तूं आसण न वेसणों एक लाल। संखा कंखा वितिगिछा उपजे मनमांहीं सील वरत पालू के नाही लाल " ॥ती०॥
१०-नारी-स्पर्श के वेदन से अनेक दुर्गुण होते हैं। अतः नारी के साथ एक आसन पर नहीं बैठना चाहिए। इससे शंका, कांक्षा उत्पन्न होती है तथा शीलव्रत का पालन करूँ या नहीं, यह विचिकित्सा उत्पन्न होती है।
११-ए बाड़ लोपी तिण वात विगोई,
तिण दीयों ब्रह्म वरत खोई लाल । ते नरक निगोद मांहें जाय पडीया, ते संसार में रडबडिया लाल ॥ती०॥
११-जिसने इस तीसरी बाड़ का लोप किया, उसने व्रत-भङ्ग कर ब्रह्मचर्य व्रत को खो दिया। ब्रह्मचर्य व्रत से पतित होनेवाले नरक निगोद में गिरे और उन्होंने संसार में परिभ्रमण किया ।..
१२-काचर कोहलो फाड्यां कर फाटों,
तिण सं वाक तूट हुवे आटो लाल। ज्यं अस्त्री सं एकण आसण बेठांतांम ब्रह्मचारीरा चले परिणाम लाल" ॥ती०॥
१२-जैसे काचर और कोहल (कद्दू) को काटकर आटे में गूंथने से आटा लसरहित हो जाता है, उसी प्रकार एक आसन पर बैठने से ब्रह्मचारी . के परिणाम चलित हो जाते हैं।
२-१३-मा बेन बेटी पिण इमहीज जाणों,
एकण आसण मतीय वेसाणों लाल। त्यां सं पिण भाग गया , अनंत, ते भाग्यो , श्री भगवंत लाल" ती०॥
१३-माता, बहन या बेटी के प्रति भी यही नियम समझो । ब्रह्मचारी उन्हें भी अपने साथ एक आसन पर नहीं बैठावे, क्योंकि इनसे भी अनेक व्रतधारियों के व्रत भंग हुए हैं, ऐसा भगवान् ने कहा है।
१४-इम सांभल तीजी बाड़ म लोपो,
ब्रह्मचर्य में थिर पग रोपो लाल । तो सिव रमणी ने वेगी वरसों, आवागमण न करसों लाल ती०॥
१४–अतः उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखते हुए तीसरी बाड़ का उल्लंघन मत करों। 'ब्रह्मचर्य । में अपने पैरों को स्थिर रखो, जिससे कि तुम शीघ्र ही शिव-रमणी को वरण करो और आवागमन को मिटा सको।
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