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शील की नव बाड़
२-एकण आसण वेठां आसंगो थावें,
आसंगे काया फरसावें लाल । काया फरस्यां विषं रस जागें, इम करतां जावक वरत भार्गलाल' ॥ती०॥
२-एक आसन पर बैठने से नारी का संसर्ग होता है। नारी-संसर्ग काया का स्पर्श कराता है। काया के स्पर्श से विषय-रस की जागृति होती है। विषय-रस की जागृति से सम्पूर्ण व्रत भंग हो जाता है।
३–पाट, बाजोट, शैय्या, संस्तारक आदि अनेक प्रकार के आसन हैं। जिनेश्वर भगवान् के वचन को सम्मुख रख कर कोई भी ब्रह्मचारी नारी के साथ एक आसन पर न बैठे।
४-स्त्री के साथ एक आसन पर बैठने से लोगों में ब्रह्मचारी के प्रति शंका हो जाती है। लोग उस पर मिथ्या कलंक लगाते हैं तथा उसके सम्बन्ध में नाना मिथ्या-प्रचार करते हैं।
३-पाट बाजोट सेजा संथारो जांणों,
एहवा आसण अनेक पिछांणों लाल। तिहां नारी सहीत बसों मत कोई,
जिण वचनां साहमो जोई लाल " ॥ती०॥ ४-अस्त्री सहीत से एकण आसण,
तोवले लोक पडें , विमासण लाल । अछतोई आल दे करें फितूरो,
वले बोलें अनेक विध कूड़ो लाल' ॥ती०॥ ५-जिन ठांमे बैठी हुवें नारी,
तिण ठांमे न उसे ब्रह्मचारी लाल । बसें तो अंतर मूहरत टाली,
वेद सभाव संभाली लाल " ॥ती०॥ ६-नारी वेद रा पुदगल विण थी,
र नर वेद विकार वेद जिणथी लाल। ॐ यं हीज नारी ने पुरष सूं जाणों, कार ___ माहोमां वेद विकार पिछांणों लाल ॥ती०॥ ७–नारी फरस वेद्यां हुवें भोग रो रागी,
जब जावें वरत सं भागी लाल । इण कारण एकण आसण सणों नाहीं 'नारी फरस डरणों मन मांहीं लाल ॥ती॥
५-वेद के स्वभाव का ध्यान रख कर जिस स्थान से स्त्री उठी हो, उस स्थान पर ब्रह्मचारी तुरंत न बैठे। अगर बैठे तो अन्तर मुहूर्त का समय टाल कर बैठे ।
कार ६-नारी-वेद के पुद्गलों से पुरुष-वेद विकार को प्राप्त होता है। उसी प्रकार पुरुष-वेद के पुद्गलों से नारी-वेद । इस प्रकार संसर्ग से परस्पर वेद-विकार उत्पन्न होता है। यह समझो ।
-स्त्री-स्पर्श से वेदानुभव को प्राप्त हो ब्रह्मचारी भोग का अनुरागी बनता है। इससे व्रत भंग or हो जाता है। इसी कारण से ब्रह्मचारी को नारी
के संग एक आसन पर नहीं बैठना चाहिए और नारी-स्पर्श से मन में डरते रहना चाहिए।
८-सम्भूत चक्रवती की रानी ने मन में अनुराग लाकर मुनि को वन्दन किया। मुनि को रानी के हाथों का स्पर्श हुआ। मुनि ने नियाना कर चारित्र खो दिया और दुर्गति का रास्ता अपनाया ।
८-श्रीरांणी सम्भूत वांयोआणी मनरागोंकि
कर फरस मुनी तन लागों लाल । तिण चारित्र खोय नीहांणों कीधों, दुरगत नों पंथ लीधो लाल ॥ती॥
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