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तीजी बाड़ एकण सय्या नहीं बेंसवों
१-तीसरी बाड़ में ऐसा कहा गया है कि ब्रह्मचारी को नारी के साथ एक आसन पर नहीं बैठना चाहिए। यह जिन शासन की रीति है।
१-हिवें तीजी बाड़ में इम कयों,
ब्रह्मचारी नार सहीत। - एकण सय्या नहीं .. बसवों,
ए जिण सासण री रीत '॥ २-अंगन कुंड पासे रहें. १३३" तो प्रगले घृतनों कंभ । का। • ज्यू नारी संगति पुरष नों, रहें किसी पर बंभ २ ॥
- २-अग्नि-कुण्ड के समीप रखा हुआ घी का घड़ा पिघल जाता है वैसे ही स्त्री की संगति करने पर पुरुष का ब्रह्मचर्य कसे रह सकता है ?
___३-हे ब्रह्मचारी! योगी ! यति ! तू नारी का संसर्ग मत कर, क्योंकि स्त्री के साथ एक आसन पर बैठने से ब्रह्मचर्य का भंग हो जाता है।
३-ब्रह्मचारी, जोगी न जती,
न करें नार प्रसंग । का एकण : आसण वसतां,
थाों वरत नो भंग ॥ ४–पावक गालें लोहने, .
जो रहे पावक संग । ____ ज्यू एकण आसण .सतां, .
न रहें वरत सुरंग ॥
४-जैसे अग्नि के संसर्ग में रहने से अग्नि लोहे को गला देती है, उसी तरह नारी के साथ एक आसन पर बैठने से ब्रह्मचर्य सुरङ्ग-स्वच्छ नहीं रहता।
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[ अभिया राणी कहे धाय ने ] १-तीजी बाड़ हिवे चित्त विचारो,
१-अब तीसरी बाड़ पर विचार करो। हे नारी सहित आमण निवांगे लाल
ब्रह्मचारी ! तू नारी के साथ एक आसन पर बैठने ____ एकण आसण बेठां काम दीपं छ,
| का त्याग कर। एक आसन पर बैठने से कामोते ब्रह्मचारी ने आछों नहीं , लाल ॥
हीपन होता है ; अतः ब्रह्मचारी के लिए नारी के
साथ एक आसन पर बैठना हितकर नहीं। तीजी बाड़ हिवें चित्त विचारो ॥आँ०॥
- ब्रह्मचारी! तुम इस तीसरी बाड़ का मन में चिन्तन करो।
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