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शील की नव बाड़
-निग्रंथ वार-वार स्रो-कथा न करें।
केवली भगवान ने कहा है-वार-वार स्त्री-कथा करने से मन को शान्ति का भङ्ग तथा विभन्न होता है और ब्रह्मचारी केवली प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट होता है। [४ ] ढाल गा०७:
'मल्ली कुमारी' का जीवन वृतांत परिशिष्ट में दिया गया है। परिशिष्ट-क कथा १६ । [५] ढाल गा०८-६:
'मृगावती' की कथा परिशिष्ट में दी गई है। परिशिष्ट-क कथा १७. [६] ढाल गा० १०
द्रोपदी को कथा के लिए देखिए परिशिष्ट-क कथा १८ [७] ढाल गा० १३:
स्वामीजी ने जो वात यहाँ कही है, उसका आधार सूत्र के निम्न वाक्य हैं:
निग्गन्थस्स खलु इत्थोणं कह कहेमाणस्स वम्भयारिस्स वम्भचेरे संका वा कखा वा विइगिच्या वा समुपज्जिज्जा भेदं वा लभेज्जा उम्मायं वा पाउणिज्जा दीहकालियं वा रोगायकं हवेज्जा केवलि पण्णताओ धम्माओ भंसेज्जा। तम्हा नो इत्थीणं कह कहेज्जा।
उत्त० १६.
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-स्त्रियों की कथा करने से निग्रंथ ब्रह्मचारी के मनमें ब्रह्मचर्य के प्रति शंका उत्पन्न होती है।
-उसके कांक्षा और विचिकित्सा उत्पन्न होती हैं। संयम का भेद और भंग होता है। उन्माद की उत्पत्ति होती है । दीर्घकालिक रोगातक होते हैं। वह केवली प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट होता है। इसलिए स्त्री-कथा नहीं कहनी चाहिए।
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