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________________ दजी बाड़ : ढाल : ३ टिप्पणियां टिप्पणियाँ atestandise uPARohirondowsiderstNAAChudaimonic L [१] दोहा १-२ स्वामीजी ने दूसरी बाड़ की जो परिभाषा यहाँ दी है, उसका आधार आगम के निम्न स्थल है। नो इत्थीर्ण कह कहिता हवद से निग्गन्थे -जो स्त्री कथा नहीं कहता वह निग्रंथ है। उत्त० १६:२ मणपाहायजणणी, कामरागविदङ्कणी । वम्भचेररओ मिकरस , थोकहं तु विवज्जए॥ -उत्त० १६ श्रो०२: -ब्रह्मचारी मनको चंचल करनेवाली और विषय-राग को बढ़ानेवाली स्त्री-विषयक कथाएं न कहे। णारीजणस्स मज्झे ण कहियावा कहा विचित्ता। विव्वोयविलाससपउत्ता हाससिंगार लोइयकहटव मोहजपणी ॥ कहाओ सिंगार कलणाओ तवतजमवमचेर घाओवधाइयायो। अणुचरमाणेणं वंभचेर न कहियव्वा न सुणियव्वा न चिंतियव्दा।। प्र०२४ दूसरी मावना -ब्रह्मचारी खियों के बीच में विभ्रम, विलासयुक्त, हास्य, शृङ्गार तथा मोह उत्पन्न करनेवाली विचित्र कथाएँ न कहे। -शृङ्गार-रस के कारण मोह उत्पन्न करनेवाली तथा तप, संयम और ब्रह्मचर्य का घात-उपवात करनेवाली कामुक कथाएँ द्राचारी न कहे. न सुने और न उनका चिन्तन करे। [२] ढाल गा० १-४ : स्वामीजी ने इन गाथाओं में जो बात कही है. उसका आधार आगम के निम्न वाक्य हैं : "न आवाहविवाह वर कहाविव इत्थीणं वा सुभगभग कहा चउसर्व्हि य महिलागुणा ण वण्ण देस जाइ कुल रुव णाम णेवत्थ परिजन कहा इत्थियाण अण्णा विय एवमाइयाओ कहाओ सिंगार कलुणाओ तवसजमवभचेर घाओवघाझ्याओ अणुचर माणेणं वमचेर ण कहियव्वा ण सुणियव्दा म चितियदा. एवं इत्थीकहविरइसमिइ जोगेण भाविओ भवइ अंतरप्पा आरयमण विरयागामधम्मे जिइंदिए वमचेर गुते। -प्र०२-४ दूसरी मावना -नूतन विवाह किए हए वर-वधू अथवा विवाह करनेवाले वर-वधू की कथा नहीं करनी चाहिए। --स्त्रियों के सौभाग्य-दुर्भाग्य की कथा नहीं करनी चाहिए। -कामशास्त्रों में वर्णित स्त्रियों के चौसठ गुणों का वर्णन नहीं करना चाहिए। स्त्रियों के वर्ण, देश, जाति, कुल, रूप, नाम नेपथ्य और परिजन सम्वन्धी कथाएँ न करनी चाहिए। शृङ्गार रस के कारण मोह उत्पन्न करनेवाली कथाएं न करनी चाहिए। इसी प्रकार की अन्य कथाएँ जो तप, संयम और ब्रह्मचर्य का घात-उपघात करनेवाली हों, उन्हें ब्रह्मचर्य का अनुसरण करनेवाला ब्रह्मचारी न कहे, न सुने और न उनका चिन्तन करे। -ब्रह्मचारी कथा-विरति-समिति के योग से अंतरात्मा को भावित करनेवाला होता है। ऐसा मैथुन से निवृत्त, इन्द्रियों के विषयों से रहित. जितेन्द्रिय पुरुष ब्रह्मचर्य में गुप्त होता है। [३] ढाल गा०६ स्वामीजी ने इस गाथा में जो बात कही है उसका आधार सूत्र के निम्न वाक्य हैं : णो णि अभिक्खणं अभिक्खणं इत्थीण कह कहइत्तए सियाः केवलो व्या-णिग्गथे णं अभिवखणं २ इत्थीर्ण कह कहमाणे संतिमेदा संति विभंगा संति केवलिपण्णताओ धम्माओ मसज्जा -आ०२-१५ : (चौथे व्रत की पहली मावना) Scanned by CamScanner
SR No.034114
Book TitleShilki Nav Badh
Original Sutra AuthorShreechand Rampuriya
Author
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1961
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size156 MB
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