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शील की नव वाड़
टिप्पणियाँ
[१] दोहा १: स्वामीजी के इस दोहे का आधार आगम का निम्नलिखित वाक्य है : णो णिग्गथे इत्थीहिं सद्धिं सन्नि सिज्जागए विहरेज्जा
-उत्त०१६:३ -निर्ग्रन्थ स्त्री के साथ एक आसन पर न बैठे।
दोहा २, ३ के 'नारि-संगति', 'नार-प्रसंग' आदि शब्दों से ऐसा लगता है कि केवल स्त्री के साथ एक आसन पर बैठना ही तीसरी वाड़ नहीं बल्कि स्त्रियों की संगति न करना, उनके साथ घुल-मिलकर वार्तालाप आदि के प्रसंग में न पड़ना, उनके साथ अत्यधिक परिचय न करना आदि भी इस वाड़ के अन्तर्गत आते हैं। .. ....... ... . ... . स्वामीजी के द्वारा प्रस्तुत तीसरी बाड़ के इस व्यापक स्वरूप का आधार आगम के निम्न स्थल हैं:
समं च संथवं थीहिं. संकहं च अभिक्खणं । बंभचेर रओ भिक्खू णिच्चसो परिवज्जए॥
-उत्त०१६ लो०३ -ब्रह्मचर्य में रत भिक्ष स्त्रियों के साथ सहवास, परिचय, वार-वार वातचीत का हमेशा परिवर्जन करे । 'गिहिसथवं न कुज्जा, कुज्जा साहूहिं संथवं ।
-दश०८:५३ -ब्रह्मचारी गृहस्थ स्त्री से परिचय न बढ़ावे। वह साधु से हो परिचय करे। ....
णो संपसारए. णो ममाए। णो कयकिरिए, वइगुत्ते अज्झप्प संवुडे परिवज्जए सदा पावं
-आचा०-११५:४ -ब्रह्मचारी स्त्रियों के साथ परिचय न करे, उनसे ममता न करे, उनकी आगत-स्वागत न करे, उनसे बात करने में वचन-गुप्त हो। वह मन को वश में कर हमेशा पापाचार से दूर रहे।
नो तासु चक्खु संधेज्जा, नो वि य साहसं समभिजाणे। नो सहियं पि विहरेज्जा, एवमप्पा सुरक्खिवो होइ ।
-सू०१.४।१:५ -ब्रह्मचारी स्त्रियों पर दृष्टि न साधे, उनके साथ कुकर्म का साहस न करे। ब्रह्मचारी स्त्रियों के साथ विहार न करे। इस प्रकार स्त्रीप्रसंग से वचने से आत्मा सुरक्षित होती है।
... ... ... इत्थिसंसग्गो, ... ... ... । नरस्सत्तगवेसिस्स विसं तालउडं जहा |
-दश०८:५७ -आत्मगवेषी ब्रह्मचारी के लिए स्त्री-संसर्ग तालपुट विष की तरह है। [२] दोहा २. स्वामीजी के इस दोहा का आधार आगम का निम्न श्लोक है:
जउ कुम्भे जोइउवगूढे, आसभित्तते नासमवयाइ । . एवित्थियाहि अणगारा, संवासैण नासमुवयन्ति ।
सू०१:४१:२७
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