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१. हिवें कहूं
छू जू सील तणी नव बाड़ ।
जूइ,
दिसा,
दसमों कोट ते चिहूँ मां ब्रह्मचर्य वरत
सार ॥
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गांव रे ते न रहें कीधां रहिसी तो खेत इण कीधां
दोली
२- खेत
३ –ज्यं ब्रह्मचारी विचरें ठम ठांम छै
तिण कारण इण वीर कही
The do te
वेरागी
नव
ते दिन
४ – बाड़ न लोपें तेहनें,
रहें
वरत
अभंग | थका,
विरकत २ चढतें रंग ' ॥
गोर्खे,
राड़ |
विधें,
बाड़ ॥
तिहां,
नार । सील री, बाड़ ॥
-अथवा नारी
भली न संगति धर्मकथा कहवी बेसी तिणरें
५ – हिवें पेहली बाड़ में इम को,
रात ।
नारी रहें विहां तिण ठामें रहिणों रह्यां वरत वणी हुवे घात ॥
नहीं,
एकली,
तास ।
नहीं,
पास ।।.
प्रथम बाड़
ढाल : २
दुहा
१- अब मैं शील की नव बाड़ों का अलग-अलग वर्णन करता हूँ।
इन बाड़ों के चारों और
दसव कोट है। नव बाड़ और दसवें कोट के भीतर ब्रह्मचर्य रूपी सार व्रत सुरक्षित रहता है।
२ - गाँव की सीमा पर बिना बाड़ का खेत झगड़ा करते रहने से सुरक्षित नहीं रह सकता । यह तो तभी सुरक्षित रहेगा, जबकि उस खेत के चारों ओर दुहरी बाड़ लगा दी जायगी ।
१३- जहाँ ब्रह्मचारी विचरण करता है वहाँ स्थान-स्थान पर स्त्रियाँ हैं । इसी कारण जिनेश्वर • भगवान् ने शील रूपी खेत की सुरक्षा के लिए नव बाड़ का कथन किया है।
४ - जो ब्रह्मचारी बाड़ों का उल्लंघन नहीं करता, उसका शीलत्रत अभंग रहता है। ब्रह्मचर्य में उस विरक्त वैरागी का अनुराग बढ़ता ही जाता है ।
५- प्रथम बाड़ में ऐसा कहा है कि जहाँ स्त्री रहती हो वहाँ ब्रह्मचारी को रात्रि में वास नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से व्रत का घात होता है ।
६-- अथवा स्त्री अकेली हो तो उसकी संगति . अच्छी नहीं। अकेली स्त्री के पास बैठ कर धर्मकथा भी नहीं कहनी चाहिए ।
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