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७- विण
संका
थी ओगुण उपजे, पां लोक | अछत्तो आल सिर, वले हुर्वे वरत पिण फोक ॥
आवें
८ - तिण सूं ब्रह्मचारी रहिणों छें
भणी, एकंत ४ ।
..हि कुण-कुण जायगां वरजवी, ज
ते
मतिवंत " ॥
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१ - भाव
धरी नित पालीयें, गिरउ ब्रह्म चरत सार हो । ब्रह्मचारी जिण थी सिव सुख पांमीयें, तूं बाड़ म खंडे लिगार हो । ब्रह्मचारी आ पेहली बाड़ ब्रह्मचर्यनी* ॥
२- मंजारी
कूकड़ मूसग
कुसल
संगत
मोर
थी
किहां घांटी मरोड़
ढाल
[ नणदल नी देशी ]
रमें,
हो । ब्र०
तेहनें,
हो ॥ त्र०
शील की नव बाड़
७ — कारण यह है कि उससे अवगुण उत्पन होते हैं। लोग शंका- प्रस्त होते हैं। बिना कारण सिर पर कलंक आता है और व्रत का भी विनाश हो जाता है।
-अस्त्री पसु निपुंसक जिहां बसे, तिहां रहिवो नहीं वास हो । ० तेहनीं संगत वारीए, वरत न करें विणास हो ॥ त्र०
८ - अतः ब्रह्मचारी को एकान्त स्थान मैं रहना कल्प्य है । ब्रह्मचारी को किन-किन स्थानों का वर्जन करना चाहिए, उनको मैं कहता हूँ। बुद्धिमान् ध्यानपूर्वक सुनें ।
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.१ - हे ब्रह्मचारी ! तीव्र भावना के साथ ब्रह्मचर्य - व्रत का पालन कर । ब्रह्मचर्य त सव व्रतों में महान् और सारपूर्ण है। तू ब्रह्मचर्य की इस बाड़ को, खण्डित मत कर, जिससे कि तुझे शिव-सुख की प्राप्ति हो ।
यह ब्रह्मचर्य की पहली बाड़ है कि ब्रह्मचारी एकान्त स्थान में वास करे ।
२ - हे ब्रह्मचारी ! चूहे, मोर और मुर्गे यदि बिल्ली के साथ खेल खेलते हैं तो वे सुरक्षित कैसे रह सकते हैं ? बिल्ली गर्दन मरोड़ कर उन्हें मार डालती है।
यह ब्रह्मचर्य की पहली बाड़ है कि ब्रह्मचारी एकान्त स्थान में वास करे ।
| ३ हे ब्रह्मचारी ! जहाँ स्त्री, पशु, नपुंसक वास करते हों उस स्थान में तुम मत रहो । ब्रह्मचारी ! उनकी संगति से दूर रहो, क्योंकि उनकी संगति ब्रह्मचर्य व्रत का विनाश करती है ।
यह ब्रह्मचर्य की पहली बाड़ है कि ब्रह्मचारी एकान्त स्थान में वास करे ।
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