________________
..
शील की नव बाड
नेयारिसं दुत्तरमत्थि लोए जहित्थिओवालमणोहराओ।
-उत्त०३२:१७ एए य संगे समइक्कमित्ता सुदुत्तरा चेव भवंति सेसा । जहा - महासागरमुत्तरित्ता नई भवे अवि गंगासमाणा ||
-उत्त० ३२:१८ -जो पुरुष मोक्षाभिलाषी है. संसार-भीर है, धर्म में स्थित है. उनके लिए भी मूर्ख के मन को हरने वाली स्त्रियों को आसक्ति को पार पाने से अधिक दुष्कर कार्य इस लोक में दूसरा नहीं है ।
-इस आसक्ति को जीत लेने पर शेष आसक्तियों का पार पाना सरल है। महा सागर तिर लेने पर गंगा के समान नदियों का तिरना क्या दुष्कर है? [११] ढाल गा०८: उत्तराध्ययन के संकेतित स्थान का कुछ अंश इस प्रकार है:.: :
. ... ..... सब मे आउस तेण भगवया एवमक्खाय। इमे खलु ते थेरेहिं भगवन्तेहिं दस बम्मचेरठाणा पन्नता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमवहले संवरबहले समाहिबहले गुते गुत्तिदिए गुतवम्भयारी सया अप्पमते विहरेजा ॥ तं जहा:
(2) नो इत्थीपसुपण्डगसंसत्ताइ सयणासणाइ सेवित्ता हवइ से निग्गन्थे। (२) 'नो इत्थीणं कहं कहित्ता हवइ से निग्गन्थे। (३) नो इत्थोणं सद्धिं सन्निसेज्जागए विहरित्ता हवइ से निग्गन्थे । (४) नो इत्थीण इन्दियाई मणोहराई मणोरमाई आलोइत्ता निज्झाइत्ता हवइ से निग्गन्थे । (1) नो इत्थीर्ण कुजुन्तरंसि वा दूसन्तरंसि वा भित्तन्तरंसि वा कूइयंस वा रुइयसदं वागीयसह वा हसियसई वा थणियस वा ___कन्दियसई वा विलवियस वा सुणेत्ता हवइ से निग्गन्थे । (६) नो निग्गन्थे पुव्वरय पुव्वकीलिय अणुसरिता हवइ से निग्गन्थे।
. (७) नो पणीयं आहार आहरित्ता हवइ से निग्गन्थे। (८) नो अइमायाए पानभोयणं आहारेत्ता हवइ से निग्गन्थे। (९) नो विभूसाणुवादी हवइ से निग्गन्थे। (१०) नो सद्दरुवरसगन्धफासाणुवादी हवइ से निग्गन्थे। ...
...... .........
Scanned by CamScanner