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शील की नव बाड़
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कोई भी चलित नहीं कर सकता । स्त्री चतुर पुरुष को भी भ्रम में डाल, उसे मूर्ख बना देती है, पर यदि मैं दृढ़ रहूंगा तो यह मेरा तिलमाथ भी बिगाड़ नहीं कर सकती ।"
पिण शील न खंडू मांहरो, आ करे अनेक उपाय ।
जो वश छे म्हारी आत्मा, तो न सके कोइ चलाय ॥
चतुर नें भोल मूर्ख करे, इसी नारी नीं जात ।
जो हूँ इण आगे सेंठो रहूँ, तो म्हारो बिगडे नहीं तिलमात ॥
इस समय की सुदर्शन की दृढ़ता पर टिप्पण करते हुए स्वामीजी लिखते हैं: "सम्यक् दृष्टि कष्ट के समय भी सम्यक् ही सोचता है । वह कोटों को फूल की तरह ग्रहण करता है। जैसे-जैसे परीषह अधिक बढ़ते हैं, वह अधिकाधिक वैराग्य के साथ व्रत को प्रभङ्ग रख उसका पालन करता है। घर वही है, जो कष्ट पड़ने पर भाग न छूटे जो कायर क्लीब होते हैं, वे ही कष्ट के समय भाग छूटते हैं। जो बेरी के सम्मुख भाग छूटता है, उसका कभी भला नहीं होता। जो पैर थाम कर मुकाबिला करता है, उसे कोई परास्त नहीं कर सकता । "
समदृष्टि बेबे समों, पाले व्रत अभंग । ज्यूं ज्यूं परीषह ऊपजे, तिम तिम घडते रंग ॥ कष्ट पड्या कायम रहे, ते साचेला सूर ।
को कार क्लीव हुवे, ते भांग हुवे चकचूर ॥
वेरी तो पाछे पड्या, जब भागां भलो न होय ।
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पग रोपी साह्यो, मंडे, त्यांसूं गंज न सके कोय ॥
कपिला सुदर्शन के शरीर से लिपट गई । सुदर्शन की वृत्तियाँ और भी अन्तर्मुख हो गई। उसने नियम लिया - यदि मैं इस उपसर्ग से बच गया तो मुझे यावज्जीवन के लिए ब्रह्मचर्य का प्रत्याख्यान है :
जो इण उपसर्ग थी ऊबरू, व्रत रहे कुशले खेम ।
तो शील छे म्हारे सर्वथा, जावजीव लगे नेम ॥
सुदर्शन ने स्त्री- परीषह के समय इस तरह अपना मन दृढ़ कर लिया। सुदर्शन की उस समय की दृढ़ता को स्वामीजी ने इस प्रकार प्रकट
किया है :
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मन दृढ़ कर लियो आपणो, शील कियो अंगीकार । कपिला नारी तो ज्यांही रही, ती मनोरमां नार ॥ अरिहंत सिद्ध साखे करी, पहरो शील सन्नाह मन वच काया वस किया, तिणरे स्यांनी परवाह ॥ आतो कपिला छे बापडी, मल मूत्र नीं भंडार ।
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जो आप उभी रहे अवच्रा, तोही शील न खंडू लिगार ॥
सुदर्शन ने अरिहंत, सिद्ध, साधु और धर्म की शरण ली और कपिला की तो बात दूर, यावज्जीवन के लिए ब्रह्मचर्य धारण कर, अपनी पत्नी मनोरमा तक के साथ विषय सेवन का त्याग कर दिया। सुदर्शन ने उस अनुकूल परीषह के समय भी भोग को विष के समान समझा ।
आखिर में कपिला ने निराश हो सुदर्शन को अपने पाश से मुक्त किया और सुदर्शन अपने घर वापिस आया। उसने नियम लिया" आज के बाद मैं पर घर में प्रवेश नहीं करूंगा : "
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कदा वले मिले जी एहवी, तो छूटीजे केम ।
तिणसूं पर घर जावा तणो, आज पछे छे नेम ॥
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जब पापीवाहन राजा की पटरानी अभया ने पंडिता भाव द्वारा सुदर्शन को ध्यानावस्था में महल में मंगाया, तब सुदर्शन के लिए-फिर एक भयानक परीषह उत्पन्न हुआ। अभया सुदर्शन से भोग की प्रार्थना करने लगी । सुदर्शन ने ध्यान पूरा कर आँखें खोलीं तो सारा दृश्य देखकर
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