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शील की नव बाड़
-महात्मा गांधी को मानव-मात्र का प्रतीक मानें और मनु बहिन को बहिन-मात्र का, तो इस प्रयोग का सार यह हो सकता है कि सब मनुष्य स्त्री-मात्र को अपनी पौत्रियाँ समझें और स्त्रियाँ पुरुष-मात्र को अपना पितामह। यह प्रयोग ऐसे पदार्थ-बोध के लिए हो तो भी उचित नहीं कहा जा सकता। क्योंकि ऐसा आदर्श महापुरुष हमेशा देते आए हैं, पर ऐसा करने के लिए उन्हें कभी ऐसा प्रयोग करना पड़ा हो. ऐसा इतिहास नहीं बताता।
२२-बाड़ें और महात्मा गांधी, ऊपर महात्मा गांधी के प्रयोगों का जो उल्लेख पाया है, उससे स्पष्ट है कि महात्मा गांधी ने प्रथम तीन बाड़ों की अवगणना की है। निर्विकार संसर्ग, स्पर्श, एक शय्या-शयन और एकान्त में अकेली स्त्री को धर्मोपदेश-यह उनके जीवन में चलते रहे। महात्मा गांधी शील की नव बाड़ों के सम्बन्ध में अपना स्वयं का चिन्तन रखते थे। वे इस विषय में सापेक्ष दृष्टि से चलते रहे। नीचे काल क्रम से उनके विचारों को दिया जा रहा है :
१-एक भाई ने पूछा- "मेरी दशा दयनीय है, दफ्तर में, रास्ते में, रात में, पढ़ते समय, काम करते हुए और ईश्वर का नाम लेते समय भी वही विचार मन में आते रहते हैं। विचारों को किस तरह काबू में रखू ? स्त्री-मात्र के प्रति मातृ-भाव कसे पैदा हो ?” महात्मा गांधी ने जवाब दिया-"यह स्थिति हृदय-द्रावक है। यह स्थिति बहुतों की होती है। पर जब तक मन उन विचारों से लड़ता रहे, तब तक डरने का कोई कारण नहीं। आँखें दोष करती हों तो उन्हें बन्द कर लेना चाहिए। कान दोष करें तो उनमें रूई भर लेनी चाहिए। आँखों को सदा नीची रख कर चलने की रीति अच्छी है। इससे उन्हें और कुछ देखने का अवकाश ही नहीं रहता। जहाँ गन्दी बातें होती हों, या गन्दे गीत गाये जा रहे हों, वहां से तुरन्त रास्ता लेना चाहिए। जीभ पर पूरा काबू हासिल करना चाहिए। पर विषय-वासना को जीतने का रामबाण उपाय तो रामनाम या ऐसा ही कोई मंत्र है ।" (२५-४-२४)
२--ब्रह्मचर्य का यह अर्थ नहीं है कि मैं स्त्री-मात्र का, अपनी बहन का भी,स्पर्श न करूं । ब्रह्मचारी होने का यह अर्थ है कि जैसे कागज को छूने से मेरे मन में कोई विकार उत्पन्न नहीं होता, वैसे ही स्त्री का स्पर्श करने से भी नहीं होना चाहिए। मेरी बहन बीमार हो और ब्रह्मचर्य के कारण मझे उसकी सेवा करने से हिचकना पड़े तो वह ब्रह्मचर्य कोड़ी काम का नहीं। मुर्द को छुकर हम जिस अविकार दशा का अनुभव कर सकते हैं : उसी अविकार दशा का अनुभव जब किसी परम सुन्दरी युवती को छुकर भी कर सकें, तभी हम सच्चे ब्रह्मचारी हैं 1(२६-२.२५)
३-विवाहित जीवन में ब्रह्मचर्य-पालन के उपाय बताते हुए महात्मा गांधी ने लिखा है :
(१) विवाहित पुरुष को अपनी स्त्री के साथ एकान्त में मिलना-जुलना बन्द करना होगा। थोड़ा विचार करने से हर आदमी देख सकता है कि संभोग के सिवा और किसी बात के लिए अपनी स्त्री से एकान्त में मिलने की जरूरत नहीं होती।
(२) रात में पति-पत्नी को अलग-अलग कमरों में सोना चाहिए। (३) दिन में दोनों को अच्छे कामों और अच्छे विचारों में सदा लगे रहना चाहिए।
(४) जिनसे अपने सद्विचार को उत्तेजना मिले, ऐसी पुस्तकें पढ़ें। ऐसे स्त्री-पुरुष के चरित्रों का मनन कर । और विषय-भोग में दुःख ही दुःख है, इसे सदा स्मरण रखें।
जो भगवान को पाने के लिए ब्रह्मचर्य-व्रत लेगा, उसे जीवन की लगाम ढीली कर देने से मिलनेवाले सुखों का मोह छोड़ना ही होगा। और इस व्रत के कड़े बन्धनों में ही सुख मानना होगा। वह दुनिया में रहे भले ही, पर उसका होकर नहीं रहेगा। उसका भोजन, उसका काम-धन्धा, उसके काम करने का समय, उसके मनवहलाव के साधन, उसका साहित्य, जीवन के प्रति उसकी दृष्टि, सभी साधारण जनसमुदाय से भिन्न होंगे। (५-६-२६)
१-अनीति की राह पर पृ० ५६,६० २-वही पृ० ६४-६५ ३--वही पृ०६८-66 ४-वही पृ० १०६
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