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अज्ञात
पंद्रहवीं सदी
सरग जमलि सोपारउं भणियइ, अागम वेद पुराण श्रुत सणीयइ,
थुणीयइ प्रादि जिणराय ॥१ अन्त-हुं मूरख छउं बुधि बल हीण 3, श्री जयतिलकसरि गुरु पय लीणउ,
__ खीणउ पाप असेसो। पढई गुणइं जे नित सोपारइ. भाव सहितु आदीसु जुहारइ.
सारइ काज असेसो ॥१६ प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय
(१२१) आदिनाथ विवाहइ
सं. १४५३ भादवा १० र०.
प्रादि-सेत्रज गिरिवर तीरथराय, ताय प्रादीसर सेवीय इ ए।
जस सिरि कोडाकोडि, जोड़ि करीयल कवीयण भणइ ए; १ भणइ कवीयण तत्थ, सिद्धि ग्या मुणिवर सत्थ ।
प्रसंख जिणवर नाण, अनंत मुनि निरवाण ॥२ अन्त-नवामहल नवयोवन, अविहड़ प्रीति संबंध ।
चउदस त्रिपनइ (१४५३) भाद्रवइ, दमि, रवि रचीउ प्रबंधो ॥ जिन धरि निज-धरि परि-घरि, जे गाइसिअ वीवाहो। श्री जयतिलकसूरि शिष्यु भणइ ते, पामिसि पुण्य उत्साहो । इति श्री प्रादिनाथ वीवाहउ समाप्त । छ ।
डूटक ए लढण १० ॥ छ । प्रतिलिपि-अ. जैन ग्रन्थालय
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